वेद में परम पिता परमात्मा स्वतः उपदेश करते हैं कि जिन विधियों से परमात्मा का साक्षात्कार किया जाता है उन विधियों के द्वारा परमात्मा का साक्षात कर लेना ही चाहिए और अपने जीवन में सुख और परमात्मा का सहाय प्राप्त करना चाहिए।
संध्या जो कि आदि ब्रह्मा जी द्वारा उपदेश की गयी थी और वे संध्या मन्त्र हमें स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित संस्कार विधि में भी मिलते हैं, में एक मन्त्र में कहा गया है कि "जपोपासनादि कर्मणाम् धर्म अर्थ काम मोक्षाणाम् सद्यः सिद्धिर्भवेन्नः" अर्थात हे परमात्मा हम जप, उपासना आदि कर्मों को करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की सिद्धियों को शीघ्र ही प्राप्त कर लेवें। बिना परमात्मा की स्तुति, प्रार्थना व उपासना के हम अल्पबुद्धि जीव, ये चार प्राप्त करने को समर्थ नहीं हैं। बिना उसकी कृपा के यह असंभव है।
अब विचार आता है कि ये चार सिद्धियां क्या हैं? सिद्धि उसे कहते हैं जिन्हें सिद्ध किया जाए अर्थात किसी चीज़ को भी सिद्ध करने में ज्ञान, समय, साधन व बुद्धि आदि की आवश्यकता होती है सिद्धि का अर्थ ये नहीं समझ लेना चाहिए कि बस इच्छा की और धार्मिक कार्य संपन्न हो गए, मन्त्र मारा और पैसों की ढेरी बन गयी, कामना की और कामना तुरंत पूरी हो गयी या पल में मोक्ष में पहुँच गए। इसमें तो विधि पूर्वक कर्म करना पड़ता है तभी ये चार पूरे होते हैं। इसमें समय भी लगता है और वो बुद्धि और क्षमता की भी ज़रूरत होती है जिससे कार्य पूर्ण हो जाये। इतना सब कुछ परम पिता परमात्मा की कृपा और उसको खुश किए बिना संभव नहीं है। और ऐसा माना जाता है बल्कि ये सत्य है के योगी को सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं परन्तु यदि योगी सिद्धियों में फँस जाता है तो वह परम धाम मोक्ष से वंचित हो जाता है अतः योगी को निर्लेप होना आवश्यक है। आजकल बाबा रामदेव जी ने लगभग सभी को योग का सबक सीखा -सिखा कर योगी बना डाला है वह दिन दूर नहीं जब उत्तम योगी ही राष्ट्र की बागडोर सम्हालेंगे और राष्ट्र की प्रजा भी योगी ही होगी और उत्तम चरित्र होने के कारण अधिकतम प्रजा स्वाधीन भी होगी। उनकी शुभेच्छाएँ भी पूर्ण हुआ करेंगी जिससे भारत फिर से दुनियां के राष्ट्रों में सिरमौर होगा।
व्यक्ति को गायत्री जप, ॐ के जप व अन्य जप करने चाहिए। उपासना में हमें गायन, वादन, व मंत्रोच्चार के द्वारा प्रभु के निकट जाने का प्रयास करना चाहिए। स्तुति में हमें अपने मुख से परम पिता परमात्मा के गुणों का बखान करना चाहिए जो के धार्मिक गुरु भी करते हैं लेकिन होना सब वेदानुकूल चाहिए हालांकि परमपिता परमात्मा तो अन्तर्निहित भावनाओं का भोजन करते हैं तो यदि कोई भूलवश सही विधि भी नहीं करपाता तो भी अधिक हानि नहीं है और कलयुग में तो किसी भी उत्तम प्रकार से कोई भक्ति करता है तो उसके फल स्वरुप भी उसे परमात्मा के सही रूप को पहचानने में सहायता मिल ही जाती है क्योंकि इस युग में अज्ञान अधिक है और परम प्रभु तो ये सब जानते है लेकिन फिर भी स्तुति, प्रार्थना व उपासना की सही विधि का ज्ञान होने तक हम उन चार से वंचित न रह जाएँ इसलिए सही विधि का पता कर लेना चाहिए।
यज्ञ, जिसको राम जी, कृष्ण जी और समस्त ऋषि मुनिओं ने पूजा है उस यज्ञ में सारी विधियां आ जाती हैं। अतः हमें यज्ञ को बढ़ावा देना चाहिए। यह यज्ञ संसार का श्रेष्ठतम कर्म है और इसको ऋषिओं ने ब्रह्माण्ड की नाभि भी बताया है।
आपका
भवानन्द आर्य 'अनुभव शर्मा'