बुधवार, 20 जुलाई 2016

भारतीय सरकारों से निवेदन

भारतीय सरकारों से निवेदन 
यदि श्रीमद भगवद् गीता के अनिवार्य अध्ययन की व्यवस्था तथा फौजियों के परिवार के भरण पोषण, नौकरी आदि की गारन्टी सरकार फौजियों को दे दे।  तो एक फौजी ५०-५० आतंकियों पर भारी पड़ेगा।  यह मेरा निश्चित मत है।

हनुमान जी, पितामह भीष्म, लक्ष्मण, चन्द्रगुप्त, शिवाजी  आदि सभी एक सैनिक भी थे।  युद्ध से पहले तत्त्व ज्ञान (आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म व कर्म सिद्धांत - ब्रह्मज्ञान) की व्यवस्था की जाये व उन्हें पारिवारिक भविष्य की चिंता से मुक्त कर दिया जाए तो एक सैनिक भी शेर की भाँति होगा।

आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

हमारा उपकार

संसार में उसी का जीवन उच्च है जो किसी का हो जाता है।  जो किसी का नहीं होता वह संसार में अधूरा बना बैठा रहता है।  देखो ! जब तक ज्ञान रूपी अग्नि में आत्मा ने स्नान नहीं किया, अपने दोषों को भस्म नहीं किया तब तक आत्मा परमात्मा से विमुख ही रहता है।  इसी प्रकार हमें अपने को ज्ञान रूपी अग्नि में भस्म करना है।  जब हम ज्ञान के हो जाते हैं तो हमारा स्वरुप देवताओं के समक्ष आ जाएगा। और इसके बिना हम किसी का उपकार भी न कर पाएंगे।  बिना उपकार किये हमारा उपकार कभी भी न हो पाएगा।  



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सोमवार, 4 जुलाई 2016

जाग रहा है भारत देश

जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।
योग, यज्ञ, उपासना प्रभु की करने लगा है क्योंकि देश।
फिर से धन, ऐश्वर्य और ज्ञान हम पर हुआ मेहरबां है।
धर्म, अर्थ और काम मोक्ष की आस हमें ऐ नादाँ है।


सब कुछ हम पर है, हम सब कुछ हैं।
छूटा अज्ञान, अन्धकार, अशुभ  और क्लेश।

जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।


बल अंतर का जाग चुका है बल शरीर में आया है।
आध्यात्मिकता व भौतिकता का मिलन हमें यूँ भाया है।
आज दूर यंत्रों से हों या न हों प्रेम घुमड़ कर छाया है।
कृपा प्रभु से आत्म विभोर हो ह्रदय हमारा गाता है।


जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।


आओ सभी इस परम पिता के लिए गीत मिल गायें।
दूर शत्रुता करके फिर से प्रभु शरण हो जाएँ।
बन जाने दो इस देश को फिर से विश्व गुरु ऐ यारों।
हो जाये निष्कंटक जिससे राज्य धर्म वैदिक का।


शंख, चक्र अपनाओ फिर से पद्म, गदा धारो तुम।
ऐ ब्रह्मचारी विष्णु रूप अपने को पहचानो तुम।


जाग रहा है भाग्य हमारा जाग रहा है भारत देश।


(स्वरचित)


आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

शनिवार, 2 जुलाई 2016

योग विद्या व वेद

योगी लोग मधुर प्यारी वाणी से योग सीखने वालों को उपदेश करें और अपना सर्वस्व योग ही को जानें तथा अन्य मनुष्य वैसे योगी का सदा आश्रय किया करें।यजुर्वेद।।७।११।।


हे योग की इच्छा करने वाले ! जैसे शमदमादि गुणयुक्त पुरुष योगबल से विद्याबल की उन्नति कर सकता है, वही अविद्या रूपी अंधकार का विध्वंस करने वाली योगविद्या सतजनों को प्राप्त होकर जैसे यथोचित सुख देती है वैसे आपको दे।यजुर्वेद।।७।१२।।



शमदमादिगुणों का आधार योगाभ्यास में तत्पर योगी-जन अपनी योगविद्या के प्रचार से योगविद्या चाहने वालों का आत्मबल बढ़ाता हुआ सब जगह सूर्य के सामान प्रकाशित होता है। यजुर्वेद।।७।१३।। 
आपका अपना 
अनुभव शर्मा
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