शनिवार, 31 दिसंबर 2016

माई आश्रम


माई आश्रम

एक रहस्यमयी पेशकश
भारत की एक विरासत - माई आश्रम, इस्माईलपुर, बिजनौर


    (लेखकः डा0 नेतराम सिंह)

ग्राम इस्माईलपुर और चहला के मध्य एक विरासत के विषय में यह लेखनी उस बात को उद्घोषित करती है जो आज से लगभग पाँच हजार साल पहले (महाभारत काल) की बात है और वह यह कि जब पांडव जुए में हार गये थे और पाँचों पांडव व द्रौपदी चाचा विदुर भगत से मिलने आये थे। ज्ञातव्य हो कि विदुर भगत जी की कुटिया भी यहाँ से लगभग 35 कि0मी0 दूर दारानगर गंज में थी और वह स्थान अब भी विदुर कुटी के नाम से प्रसिद्ध है। द्रौपदी के चीर हरण के समय विदुर जी ने दुर्योधन को समझाया था कि भक्त, सती व अपने परिजनों का निरादर नहीं करना चाहिए। इस बात पर दुर्योधन ने भरी सभा में उनका अपमान किया था तब विदुर जी उठकर अपनी कुटिया में दारानगर गंज आ गए थे। जुए में छल से हारने के बाद पांडव हस्तिनापुर त्यागकर सर्वप्रथम विदुर जी की कुटिया में गए जिससे कि कोई समाधान विदुर जी बताएँ। दो रात विदुर जी के यहाँ रुके। उन्होंने उन्हें गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम सैन्यद्वार (सैन्द्वार) में जाने का सुझाव दिया और कहा कि द्रोणाचार्य दुर्योधन के गुरु हैं अतः वह कोई उपाय अवश्य ही बता सकते हैं। पाँचों पांडव जब द्रोणाचार्य के आश्रम गये तब द्रोणाचार्य को दुर्योधन का भय सताने लगा कि कहीं दुर्योधन को पता न चल जाए और वह आ धमके और विदुर की भाँति मुझे भी अपमानित न करे। उस समय पूरब-उत्तर-दक्षिण मे बहुत बड़ा वन क्षेत्र था। तब पांडव द्रौपदी को लेकर वन को निकल आये। आज जो वर्तमान समय में ग्राम इस्माईलपुर में जहाँ बिजनौर जिले का एक मात्र बी0टी0सी0 विद्यालय भी है और पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री स्व0 तेजपाल सिंह के सुपुत्र पंकज चौधरी का प्रसिद्ध सरिया फ्रफ़ैक्ट्री भी है जहाँ उस समय वन था यहाँ आज चहला व इस्माईलपुर ग्राम के मध्य एक माई आश्रम भी है। इसी भूमि पर पांडवों ने द्रौपदी के साथ निवास किया था। माता द्रौपदी को वन देवी कहा जाता था। युधिष्ठिर किसी भाई को माता द्रौपदी की रक्षा के लिए छोड़कर विदुर जी से मंत्रणा करने के लिए बड़े गोपनीय ठंग से जाया करते थे। इसी स्थान को नकुल-सहदेव माई वन कहते थे और माता द्रौपदी को वन-देवी व माई कहते थे। कुछ वनवासी लोग भी माता द्रौपदी को माई के नाम से पुकारते थे। इन्होंने 13 दिन इसी स्थान पर विश्राम किया और अपना विचार मंथन भी किया। अतः यह स्थान माई के मंदिर के नाम से आज भी प्रसिद्ध है।


पूरे भारत देश में अन्य देवी देवताओं के मंदिर हैं परन्तु माई का कोई मंदिर यहाँ के अलावा और कहीें नहीं है। लगभग चार हजार वर्ष तक इस का नाम इतिहास के पन्नों से भी लुप्त रहा। इस स्थान के चारों ओर रेत के टीले व रेतीला जंगल वन बन गया अर्थात् यह स्थान रेत आदि से ढक गया। प्राकृतिक हलचल, आपदाओं आदि के बाद भी इस स्थान ने अपना अस्तित्व नहीं खोया। इस स्थान पर बाबा भगत गोपाल नाथ आ गए। आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व की बात है कि हरियाणा के झज्जार स्थान से
महात्मा गोपाल नाथ जी अपनी मंडली के साथ हरिद्वार आ रहे थे। ये महात्मा बस्ती में नहीं रुकते थे। जंगल में रुकते थे। वे इसी स्थान पर रात्रि में रुकने के लिए गये। बहुत सी गउ माताएँ भी उनके साथ थीं। कहा जाता है कि उन्हें यहाँ देवी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि आज यह वन आबाद हो चुका है और इस्माईलपुर, चहला, मदारीपुर व बिराल आदि गाँव यहाँ बस चुके हैं इसलिए अब मेरी रक्षा हो सकेगी अतः मुझे जागृत करो। 

माई आश्रम की कुछ झलकियाँ =

माई आश्रम, इस समय (इसके पीछे माई वन भी है)
६०० साल पुराना खण्डहर  जो अब भी विद्यमान है। 
इस आश्रम में नीचे अंडर ग्राउण्ड बिल्डिंग का रास्ता यहाँ से जाता है 
लखोरी ईंटों से बना प्राचीन कुआँ जिससे पानी पिलवाया जाता था



(क्रमशः)

माई आश्रम भाग - २ के लिए क्लिक करें



आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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