सोमवार, 18 दिसंबर 2017

मूर्ख कौन

विदुर नीति।।१।३५-४४


जो व्यक्ति विद्वान् न होते हुए भी सब काम अभिमान से करने में तत्पर रहता है, निर्धन होने पर भी बहुत उदार है, बिना कर्म किये फल की अर्थात अर्थ प्राप्ति की इच्छा करता है उसे पंडित लोग मूर्ख कहते हैं। 

जो अपने काम अर्थात कर्त्तव्य छोड़ कर दूसरों के काम करने और पूरा करने में लगा रहता है, जो दोस्तों-मित्रों से झूठा आचरण करता है, वही मूर्ख कहलाता है। 

जो बुरे लोगों और बुरी वस्तुओं को चाहता है तथा अच्छी चीज़ों और अच्छे लोगों को छोड़ता और त्यागता है, शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी करता है उसे मुर्ख कहते हैं। 

जो शत्रु को मित्र और मित्र को शत्रु बना लेता है, मित्रों को कष्ट पहुंचता है और ग़लत कार्य करता है, उसे ही मूर्ख कहते हैं। 

हे भरत श्रेष्ठ! जो व्यक्ति अपना काम अपनी हैसियत से ज़्यादा फैलाता है, सब जगह संदेह करता है, संशयवान रहता है, जल्दी होने वाले कामों को लटकाये रखता है और देरी करता है उसे मूर्ख कहते हैं। 

जो माता-पिता अथवा पितरों का सम्मान नहीं करता, उनका श्राद्ध नहीं करता, जो देवताओ की पूजा नहीं करता , जिसे अच्छे  मित्र नहीं मिलते अर्थात सहायता करने वाले अच्छे मित्र नहीं बना पाता , वही मुर्ख है। 

जो कहीं बिना बुलाये पहुँच जाता है, बिना पूछे बहुत बोलता है, जिस पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास कर लेता है, वही दुष्ट व्यक्ति मुर्ख कहलाता है। 

जो अपनी बुराइयां दूसरों में भी फैला देता है और कमजोर होकर ताकतवर से दुश्मनी अर्थात असमर्थ होने पर भी समर्थ व्यक्ति पर क्रोध करता है, वही अत्यंत मुर्ख कहलाता है। 

बहुत से ऐसे काम हैं जिन्हें धार्मिक व आर्थिक दृष्टि से करने की मनाही होती है, या जिन्हें कर पाना असंभव होता है।  जो व्यक्ति शक्ति का अनुमान लगाए बिना इस प्रकार के काम पूरा करना चाहते हैं, वहीँ मुर्ख कहलाते हैं।  पंडितों ने इन्हें मुर्ख कहा है। 

राजन! अपात्र को शिक्षा देता है और ऐसा कार्य करता है जिसका कोई लाभ या उपयोग नहीं होता, जो कंजूस व्यक्ति का आश्रय लेता है, उसे मूढ़ चित्त वाला कहते हैं। 


आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 


रविवार, 17 दिसंबर 2017

प्रैस विज्ञप्ति , १७-१२-२०१७, चांदपुर

देव व्रत जी वेद मंदिर चांदपुर में योग के महत्त्व, नशा मुक्ति, समाज सुधार के विचार रखे 

१७-१२-२०१७, चांदपुर

भारत स्वाभिमान के तत्वाधान में आज दिन रविवार को वेद मंदिर, रामलीला मैदान चांदपुर के प्रांगण में पाँचों समितियों की कार्यकारिणी की एक मीटिंग हुयी। कार्यकारिणी मीटिंग के संयोजक अमित कुमार आर्य (त० प्र०, युवाभारत) ने कहा कि जब सभी लोगों को सही सही सुविधाएँ प्राप्त होंगी तभी वे पूर्ण रूप से कार्य करने में समर्थ हैं।  रणधीर सिंह आर्य (त०प्र०, भारत स्वाभिमान) ने सञ्चालन किया और सभी समिति के लिए कठिन मेहनत व ईमानदारी व सच्चाई से कार्य करने वाले सदस्यों को साधुवाद दिया।  श्री कृष्ण कुमार ने किस प्रकार से सभी लोगों के मिल कर चलने से हमारा उत्थान होगा इस विषय में बताया। अनुभव शर्मा (जिला मीडिया प्रभारी, बिजनौर) ने नियमित योग के महत्त्व को बताते हुए कहा के अपूर्व शक्तियों के स्वामी बनने के लिए, ऐश्वर्यवान बनने के लिए योग नियमित रूप से करें। जिला योग प्रचारिका शिवानी शर्मा ने स्कूल व कॉलेजों में योग शिविर लगवाने के लिए, नशा मुक्ति के लिए, जन जागरण आदि के लिए पूर्व नियोजित योजनाए बतायीं। श्री राजीव रुहेला(जिला युवा प्रभारी)  ने समिति की  सम्पूर्ण कार्य योजना का ब्यौरा प्रस्तुत किया। 

श्री महर्षि जी, जिला अध्यक्ष, भारत स्वाभिमान ने सभी पदाधिकारियों को सम्बोधित किया और कहा कि हम लोगों को किस प्रकार योग, नशा मुक्ति, देश जागृति  आदि कार्यक्रमों को सुचारु रूप से चलाना है।  मुख्य अतिथि श्री देव व्रत जी, स्वतंत्र प्रभार, सेवाव्रती, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार ने योग के ऊपर विशेष बल  अपने ओजस्वी प्रवचन के द्वारा सभी भाइयों और बहनों को समिति के कार्य अपने जिले में सुचारु व सक्रिय रूप से चलाने व योग के कार्यक्रमों को गाँव गाँव में नियमित रूप से चलाने के लिए सुझाव व आशीष प्रदान किया।   

सभा अध्यक्ष श्री प्रणव मुनि जी ने कहा कि योग अपनाना ज़रूरी है और बताया कि मोबाइल आदि के सदुपयोग करने से किस प्रकार मानव का उत्थान हो सकता है परन्तु छोटे बच्चों से इस मोबाइल को दूर रखने की सलाह दी।  माननीय अतिथि महोदय ने भी इस बात  समर्थन किया और कहा कि इस से उत्पन्न विकिरण के द्वाराबच्चों शरीर पर बहुत बुरा असर भी पड़ता है। 

बहन पीयूष राजपूत (जि ० मंत्री भारत स्वाभिमान), शोभा शर्मा, अर्चना शर्मा, माया देवी, किंशुक प्रताप (नव निर्वाचित तहसील महा मंत्री, युवा भारत) ने अपनी समस्याएं व सुझाव रखे। 

नन्हे सिंह, चंद्रपाल  सिंह, प्रकाश वीर जी(त० प्र० नूरपुर ब्लॉक ), दिनेश कुमार, प्रेमराज जी आदि आदि लगभग सभी समितियों के पदाधिकारी मीटिंग में उपस्थित थे। 



अनुभव शर्मा 
जिला मीडिया प्रभारी, जिला बिजनौर (भारत स्वाभिमान)

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

पंडित कौन?

विदुर नीति।।१।।२०-३४।।



जिन्हें अपने वास्तविक स्वरुप का ज्ञान है, जो धर्मात्मा हैं, जो दुःख सहन कर लेते हैं, जो धर्म पालन करते हैं तथा जो लालच में सही रास्ते से नहीं भटकते, वे ही पंडित अर्थात विद्वान् कहलाते हैं।


जो अच्छे कर्मों को करता है तथा निन्दित बुरे कर्मों से बचता है, जो आस्तिक  श्रद्वालु है, वही पंडित है।  पंडित के यही सदगुण उसकी पहचान हैं।  यही उसके लक्षण हैं।

जो पुरुष क्रोध, प्रसन्नता, लज्जा, उद्दंडता तथा अपने आप को पूज्य समझने के अभिमान के वश में होकर अपने मार्ग से विचलित नहीं होता, वही पंडित कहलाता है।

जिसकी कार्य-तथा विचार-विमर्श की भनक किसी दूसरे को नहीं  होती, वरन कार्य पूरा हो जाने पर ही लोगों को उसकी कार्य योजना का पता लगता है, वही पंडित है।

जिस व्यक्ति के कार्य में सर्दी, गर्मी, भय, मैथुन, अमीरी-गरीबी आदि बातें कोई बाधा नहीं पहुंचा सकतीं, अर्थात इनके कारण वह व्यक्ति अपना काम नहीं रोकता, वही पंडित कहलाता है।

जो व्यक्ति सांसारिक होते हुए भी धर्म और अर्थ का पालन करता है तथा काम और अर्थ में से अर्थ को ही चुनता है, पंडित कहलाता है।

जो व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार काम करना चाहता है और शक्ति के अनुसार ही काम करता है तथा किसी का भी अपमान नहीं करता, वही पंडित है।

जो बात को जल्दी समझ जाता है फिर भी ध्यान से देर तक बात सुनता है।  बात सुनकर उस पर आचरण करता है।  जब तक उससे कोई न पूछे तब तक वह दूसरे के विषय में व्यर्थ कुछ बात नहीं बोलता।  वही पंडित है।

जो व्यक्ति अप्राप्य वस्तु के लिए बेचैन नहीं होता, नष्ट हुई वस्तु के लिए शोक नहीं करता तथा विपत्ति में भी घबराता नहीं, वही पंडित है।

जो सोच विचार कर निश्चय के बाद काम करता है और आरम्भ करने के बाद काम को अधूरा नहीं छोड़ता, समय व्यर्थ नहीं बिताता , जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया है, वहीँ पंडित कहलाता है।

हे भारत श्रेष्ठ! जो व्यक्ति अच्छे और शिष्ट जनों के योग्य और भलाई के काम करने में लगे रहते हैं, अपनी भलाई अथवा हित करने वाले की निंदा नहीं करते, वे ही पंडित कहलाते हैं।

जो सम्मान मिलने पर बहुत खुश नहीं होता तथा अपमान होने पर दुखी नहीं होता, वरन गंगाजल के कुंड ले समान सुख-दुःख और मान-अपमान में समान रहता है। वही पंडित है।

जो व्यक्ति प्राणियों के तत्व के बारे में जानकारी रखता है, सभी कामों के करने के ढंग को जानता है , सभी मनुष्यों की परेशानियों को दूर करने के मार्ग जानता है, सभी प्राणियों को समझता है, वही पंडित है।

जो व्यक्ति विषय को अच्छी तरह समझ लेता हो, उसके सम्बन्ध में धाराप्रवाह बोलता हो, अपनी बात को अच्छी तरह समझा पाता हो, विद्वान् और तर्कशील तथा प्रतिभाशाली हो वही पंडित है।

जिसका शास्त्र (विषय) बुद्धि के अनुकूल हो अर्थात तर्कसंगत हो तथा उसका ज्ञान व प्रवृत्तियाँ शास्त्र के अनुसार हों, अर्थात वह शास्त्र के अनुकूल काम करता हो, जो कभी ग़लत रास्ते पर न जाता हो, अर्थात मर्यादा में रहता हो, वही पंडित कहलाता है।



आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

ब्राह्मणों की उत्पति


प्रश्न : नमस्कार भ्राता श्री, एक सज्जन ब्राह्मणों की उत्पति और प्रथम पूर्वज के विषय में जानना चाहते हैं। उचित जानकारी इसी इनबॉक्स में भेंजे


उत्तर : आज से १,९७,२९,४९,११८ वर्ष पहले जिस समय संसार की उत्पत्ति हुई तो आज से १,९६,०८,५३,११८ वर्ष पहले परमात्मा ने एक साथ अनेक मानव व दानवों को जन्म दिलाया।  पहले मानव ऋषि थे अतः वर्ण व्यवस्था न थी। पश्चात दानव लोग मानवों से अधिक होने लगे तो तथा वे अहिंसक मानवों को हिंसा के द्वारा बहुत परेशान करने लगे तो राक्षसों से रक्षा के लिए राष्ट्र का निर्माण किया गया और इस कार्य को महर्षि मनु महाराज ने किया और वर्ण व्यवस्था की गई, राष्ट्र की रक्षा हेतु। अतः मनु महाराज ही ब्राह्मण व्यवस्था के जनक माने जाते हैं। आर्यावर्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण किया गया व प्रथम अनेक ऋषि मुनि ब्राह्मण रूप में राष्ट्र में सम्मिलित किए गए। वर्ण व्यवस्था के आधार पर वेदानुकूल मनु जी ने वर्ण निर्धारित करने की परिपाटी नियुक्त की और वर्ण निर्धारित करने का कार्य, गुरुकुल चला रहे गुरुजनों को सौंपा। अयोध्या नगरी का निर्माण महात्मा मनु जी ने वेदानुकूल किया - अष्ट चक्र नव द्वारा पुर अयोध्या।  आठ चक्र व नौ द्वार शरीर रूपी मंदिर में भी होते हैं। 

(आठ चक्र : मूलाधार चक्र, नाभि चक्र, ह्रदय चक्र, कंठ चक्र, नासिका चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्रार चक्र, पुष्प चक्र )
(नव द्वार : दो आँख, दो कान , दो नासिकारंध्र, मुख, पाणी , पायु)

जिस प्रकार से शरीर में व्यवस्था होती है उसी प्रकार की व्यवस्था अयोध्या पूरी में भी की गयी। 

ब्राह्मणो मुखमासीद बाहु राजन्यकृतः उरु तदस्य तद् वैश्य पद्भ्यां शूद्रोSजायत। 

जिस प्रकार शरीर में मुख का स्थान होता है उसी प्रकार समाज में ब्राह्मणों के कर्म निर्धारित किये - यज्ञ करना, कराना, वेद पढ़ना, पढ़ाना, दान लेना व देना।  जिस प्रकार शरीर में हाथ रक्षा के हेतु होते हैं, उसी प्रकार  कार्य समाज में सौंपा - वेद पढ़ना, रक्षा करना, दान लेना दान देना, यज्ञ करना।  जिस प्रकार उदर का स्थान होता है उसी प्रकार वैश्यों को समाज में कार्य सौंपा - व्यापार करना, दान देना, खेती करना, पशुपालन, वेद पढ़ना। जिस प्रकार पैरों का स्थान शरीर में होता है उसी प्रकार शूदों को कार्य सौंपा - इन सभी कार्यों में इन की सेवा भाव से आज्ञा पालन अर्थात सेवा करना।  

आजकल तो सभी सेवक ही बन गए हैं और अपने अपने बॉसेस की सेवा मात्र कर रहे हैं।  परन्तु अध्यापक ब्राह्मण कर्म अपनाये हैं, फौजी व पुलिस क्षत्रिय कर्म, व्यापारी वैश्य कर्म व सरकारी पियोन शूद्र कर्म।  ये चार भाग आज भी हैं।  इन से मुक्त समाज नहीं।  परन्तु धार्मिक होना आवश्यक है। 


आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

रविवार, 3 दिसंबर 2017

गायत्री मंत्र

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🙏 गायत्री मंत्र 🙏 
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यजुर्वेद ३६।३॥

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भावार्थ:
जो मनुष्य कर्म उपासना और ज्ञान सम्बन्धिनी विद्याओं का सम्यक् ग्रहण कर सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त परमात्मा के साथ अपने आत्मा को युक्त करते हैं तथा अधर्म अनैश्वर्य और दुख रूप मलों को छुड़ा के धर्म ऐश्वर्य और सुखों को प्राप्त होते हैं उन को अन्तर्यामी जगदीश्वर आप ही धर्म के अनुष्ठान और अधर्म का त्याग कराने को सदैव चाहता है।



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ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

इन्द्रियों से पञ्च महाभूतों का सम्बन्ध

ज्ञानेन्द्रियाँ                                   इन्द्रिय विषय                              पञ्च महाभूतों से सम्बन्ध 


चक्षु                                            दर्शन                                           अग्नि

श्रोत                                            शब्द                                            आकाश

नासिका                                      गंध                                              पृथ्वी

जिव्हा                                         रस                                               जल

त्वचा                                          स्पर्श                                             वायु

मन                                            मनन, चिंतन                                  पञ्च तन्मात्राएँ


(इन्द्रियों से पञ्च महाभूतों का सम्बन्ध)

आपका

ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

शनिवार, 11 नवंबर 2017

षट् (संख्या)

षट् (संख्या) - 6



सर्वाः संख्याः प्रधानाः तथापि भारतीयानां चिन्तनमनुसृत्य काचितां संख्यानां प्राधान्यं किञ्चिद् अधिकम् अस्तीति दृश्यते। यथा शून्यम् एकम् अष्ट नव षोडश अष्टादश अष्टोत्तरशतं इत्यादयाः।  एवं रीत्या षड् अपि किञ्चित् प्राधान्ययुक्ता एव । भारतीयानां तत्तचिन्तने षड् इति संख्यायाः प्राधान्यं कुत्र कुत्रास्‍तीति सम्क्षिप्तरूपेण पश्यामः।

षण्मुखः

भगवतः कार्तिकेयस्य षण्मुखः -षडाननः इति नामद्वयं प्रसिद्धं तस्य षट् मुखानि सन्तीति कारणेन षडानन इति प्रसिद्धो जातः। भगवतः षट् मुखानि पञ्चेन्द्रियानां तथा मनसः प्रतीकानि इत्येव अवगम्यन्ते। षट्मातृभिः पोषितः भगवान् सुब्रह्मण्यः षण्मातुर इत्यपि प्रसिद्धः।

षड्गुणा:

ज्ञान-बल-ऐश्वर्य- वीर्य - शक्ति -तेजस् एते षड्गुणा इति बुधैः कथ्यन्ते।

अरि- षड्वर्गः

षट् शत्रवः काम-क्रोध लोभ - मोह - मद - मास्तर्य एते जीवने अस्माकं नाशाय एव भवन्ति। अत वयं एतान्  वर्जयेम।

षडूर्मयः

शोक - मोह- ज्वर - मृत्यु - क्षुधा - पिपासा च एताः षडूर्मयः। अर्थात् ऐताः शारीरिकान् एवं मानसिकान् च भावान् जनयन्ति। शत्रुजित्त्, शत्रुतापनः एेते विष्णोः नामनी अत्र आत्मनि स्थितानां एतादृशानां शत्रूणाम् उपरि विजयं प्राप्तम् इत्येव भावः।

षडङ्गन्यासः

होमजपपूजादि उपासनानां पूर्वं मन्त्रसमेतं शरीसस्य षट् स्थानेषु स्पृशति एतदेव षडङ्गन्यासः।

षट्कर्माणि

क्षमा - दम - तप - शौच - क्षान्ति- आर्जवम् इति ब्राह्मणानां लक्षणानि इति गीतायाम्।

षड्शास्त्राणि

शिक्षा -कल्प- व्याकरणं- निरुक्तं -छन्दः- ज्योतिषम् एतानि षड्शास्त्राणि इति प्रसिद्धानि।

षड्दर्शनानि

साङ्ख्यम् - योगम् - न्यायम् - वैशेषिकम् - मीमांसा - वेदान्तः एतानि भारतीयानां विश्वप्रसिद्धानि षड्दर्शनानि।

षड्ऋतवः

 मार्गपौषौ हिमः १
माघ-फाल्गुनौ शिशिरः २ चैत्रवैशाखौ वसन्तः ३
ज्यैष्ठाषाढौ ग्रीष्मः ४ श्रावणभाद्रौ वर्षाः ५
आश्विनकार्त्तिकौ शरत् ६

 "मासद्वयात्मकः कालः ऋतुः प्रोक्तो विचक्षणैः" इति श्लोके।

षड्रसाः

षट् विध रुचयः
कषाय- मधुर- तिक्त- लवण - आम्ल - कटु

तुवरस्तु कषायोऽस्त्री मधुरो लवणः कटुः।
तिक्तोऽम्लश्च रसाः पुंसि तद्वत्सु षडमी त्रिषु॥


षट्  संख्यासंबद्घाः इतोऽपि वैशिष्ट्यम् अस्माकं धर्मे दृश्यते।
एवं प्रकारेण बहुप्राधन्ययुक्ता संख्या अस्ति षट् इति वयं जानीम।

बुधवार, 8 नवंबर 2017

धर्म के दस लक्षण


ॐ 
धृतिः क्षमा दमो अस्तेय शौचमिन्द्रियनिग्रहः 
धीर्विद्या सत्यम् अक्रोधः दशकं  धर्मलक्षणम्।।
                                 .


भावार्थ  :  धैर्य रखना, सहनशील होना, मन को अधर्म से रोकना,चोरी-त्याग, रागद्वेष न करना, इन्द्रियों को धर्म पर चलाना, बुद्धि  बढ़ाना, विद्वान् बनना, सत्याचरण करना, क्रोध न करना  - ये दस धर्म के लक्षण हैं।


(मनुस्मृति से)




आपका अपना 

ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

गायत्री महिमा

ओ३म्

गायत्री की महिमा

शंख ऋषि कहते हैं:―

सव्याह्रतिकां सप्रणवां गायत्रीं शिरसा सह ।
ये जपन्ति सदा तेषां न भयं विद्यते क्वचित् ।।
―(१२/१४)

अर्थात्―जो सदा गायत्री का जप व्याह्रतियों और ओंकार सहित करते हैं, उन्हें कहीं भी कोई भय नहीं सताता।

शतं जप्त्वा तु सा देवी दिन-पाप-प्रणाशिनी ।
सहस्रं जप्त्वा तु तथा पातकेभ्यः समुद्धरेत् ।।
―(१२/१५)

भावार्थ―गायत्री का सौ बार जाप करने से दिन भर के पाप (नीच भावनाएँ) नष्ट हो जाते हैं तथा दिन भर पापों का प्राबल्य नहीं होने पाता और एक सहस्र बार जाप करने से यह गायत्री मन्त्र मनुष्य को पातकों से ऊपर उठा देता है और उसके मन की रुचि पापों की ओर नहीं रहती।

दशसहस्रं जप्त्वा नु सर्वकल्मषनाशिनीम् ।
सुवर्णस्तेयकृद्विप्रो ब्रह्महा गुरुतल्पगः ।
सुरापश्च विशुद्धयेत लक्षजप्यान्न संशयः ।
―(१२/१६)

भावार्थ―दस सहस्र बार जप करने से मनुष्य के सब कल्मष (बुरी भावनाएँ) नाश होते हैं, अर्थात् मनुष्य के मन में पाप की कोई मैल नहीं रहने पाती और एक लाख बार जप करने से महापातकियों के अन्तःकरण भी पवित्र हो जाते हैं।


अत्रि ऋषि का कथन है:―

गायत्रयष्टसहस्रं तु जप्यं कृत्वा स्थिते रवौ ।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो यदि न ब्रह्महा भवेत् ।।
―(११/१५)

भावार्थ―सूर्याभिमुख होकर यदि आठ हजार गायत्री का जाप करे, तो यदि वह ब्रह्म द्वेषी अर्थात् ज्ञान तथा ज्ञानी पुरुषों का शत्रु अथवा नास्तिक नहीं है , तो वह सब पापों (कुविचारों) से मुक्त हो जाता है।


(व्हाट्सप्प से )



आपका ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

सोमवार, 6 नवंबर 2017

वैदिक सूक्ति-सुधा

ओ३म्



वैदिक सूक्ति-सुधा



(1) बहुप्रजा निऋर्तिमा विवेश ।।-(ऋ०१/१६४/३२)
बहुत सन्तान वाले बहुत कष्ट पाते हैं।




(2) मा ते रिषन्नुपसत्तारो अग्ने ।।-(अथर्व० २/६/२)
प्रभो ! आपके उपासक दुःखित न हों।




(3)कस्तमिन्द्र त्वावसुमा मतर्यों दधर्षति ।। (ऋ०७/३२/१४)
ईश्वर भक्त का तिरस्कार कोई नहीं कर सकता।




(4) मा त्वा वोचन्नत्रराधसं जनासः ।।-(अथर्व० ५/११/७)
लोग मुझे कंजूस न कहें।




(5) इमं नः श्रृणवद्धवम् ।।-(ऋ०१०/२६/९)
वह प्रभु हमारी प्रार्थना को सुने।




(6) स्तोतुर्मघवन्काममा पृण ।।-(ऋ० १/५७/५)
भगवान् ! भक्त की कामनाओं को पूर्ण करो।




(7) ओ३म् खं ब्रह्म ।।-(यजु० ४०/१७)
ओ३म् परमात्मा सर्वव्यापक है।




(8) विश्वेषामिज्जनिता ब्रह्मणामसि।।-(ऋ०२/२३/२)
सम्पूर्ण विद्याओं का आदि मूल तू ही है।




(9) देवो देवानामसि ।।-(ऋ० १/९४/१३)
तू देवों का देव है।




(10) यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ।।-(अथर्व० ९/१०/१८)
जो उस प्रभु को नहीं जानता वह वेद से ही क्या फल प्राप्त करेगा।




(11) स नः पर्षदति द्विषः ।।-(ऋ० १०/१८७/५)
वह परमात्मा हमें सब कष्टों से पार करे।




(12) आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ।।-(यजु० १९/३८)
दुष्ट पुरुषों को दूर भगाओ।


(13) मा नः प्रजां रीरिषः ।।-(ऋ० १०/१८/१)
हे ईश्वर ! तू हमारी सन्तान का नाश न कर।



(14) सत्या मनसो मे अस्तु ।।-( ऋ० १०/१२८/४)
मेरे मन की भावनाएं सच्ची हों।



(15) लोकं कृणोतु साधुया ।।-(यजु० २३/४३)
जनता को सच्चरित्र बनावें।




(16) तनूपाऽ अग्न्रिः पातु दुरितादलद्यात् ।।-( यजु० ४/१५)
ईश्वर हमें निन्दनीय दुराचरण से बचावे।




(17) दस्यूनव धूनुष्व ।।-(अथर्व० १९/४६/२)
दस्युओं को धुन डाल।




(18) आ वीरोऽत्र जायताम् ।।-(अथर्व० ३/२३/२)
वीर सन्तान उत्पन्न कर।




(19) भियं दधाना ह्रदयेषु शत्रुनः ।।-(ऋ० १०/८४/७)
शत्रु के ह्रदय में भय उत्पन्न कर दो।




(20) सखा सखिभ्यो वरीयः कृणोतु ।।-(अथर्व० ७/५१/१)
मित्र को मित्र की भलाई करनी चाहिये।




(21) दूर ऊनेन हीयते ।।-(अथर्व० १०/८/१५)
बुरी संगत से मनुष्य अवनत होता है।




(22) गोस्तु मात्रा न विद्यते ।।-(यजु० २३/४८)
गौ का मूल्य नहीं है।




(23) निन्दितारो निन्द्यासो भवन्तु ।।-(ऋ० ५/२/६)
निन्दक सबसे निन्दित होते हैं।




(24) विश्वम्भर विश्वेन मा भरसा पाहि ।।-(अथर्व० २/१६/५)
प्रभो ! अपनी शक्ति से मेरी रक्षा करो।




(25) न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डिता ।।-(ऋ० १/८४/१९)
हे ईश्वर !तुम्हारे सिवाय सुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है।




(26) आर्य ज्योतिरग्राः ।।-(ऋ० ७/३३/७)
आर्य प्रकाश (ज्ञान) को प्राप्त करने वाला होता है।




(27) करो यत्र वरिवो बाधिताय ।।-( ऋ० ६/१८/१४)
पीड़ितों की सहायता करने वाले हाथ ही उत्तम हैं।



(28) प्राता रत्नं प्रातरिश्वा दधाति ।।-(ऋ० १/१२५/१)
प्रातः जागने वाला प्रभात बेला में ऐश्वर्य पाता है।




(29) मिथो विघ्नाना उपयन्तु मृत्युम् ।।-(अथर्व० ६/३२/३)
परस्पर लड़ने वाले मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।




(30) अधः पश्यस्व मोपरि ।।-(ऋ० ८/३३/१९)
हे नारि ! नीचे देख ऊपर मत देख ।




(31) मा दुरेवा उत्तरं सुम्नमुन्नशन् ।।-(ऋ २/२३/८)
दुराचारी उत्तम सुख को मत प्राप्त करें।




(32) प्रमृणीहि शत्रून् ।।-(यजु०१३/१३)
शत्रुओं को कुचल डालो।




(33) परि माग्ने दुश्चरिताद् बाधस्व ।।-(यजु० ४/२८)
हे ईश्वर ! आप मुझे दुष्ट आचरण से हटायें।




(34) शन्नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ।।-(यजु० ३६/८)
प्रभु हमारे दोपाये मनुष्यों और चौपाये पशुओं के लिए कल्याणकारी और सुखदायी हो।




(35) ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रं विरक्षति ।।-(अथर्व० ११/५/१७)
ब्रह्मचर्य रुपी तप के द्वारा राजा राष्ट्र का संरक्षण करता है।




(36) मा पुरा जरसो मृथाः ।।-(अथर्व० ५/३०/१७)
हे मनुष्य ! तू बुढ़ापे से पहले मत मर।




(37) सहोऽसि सहो मयि धेहि ।।-(यजु० १९/९)
हे प्रभो ! आप सहनशील हैं मुझमें सहनशीलता धारण करिये।


(व्हाट्सप्प से साभार )



ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

हवन विषय समीक्षा

ओ३म्
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अथ  हवन  विषय समीक्षा
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(प्रश्न) होम से क्या उपकार होता है?

(उत्तर) सब लोग जानते हैं कि दुर्गन्धयुक्त वायु और जल से रोग, रोग से प्राणियों को दुःख और सुगन्धित वायु तथा जल से आरोग्य और रोग के नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है।

 (प्रश्न) चन्दनादि घिस के किसी को लगावे वा घृतादि खाने को देवे तो बड़ा उपकार हो। अग्नि में डाल के व्यर्थ नष्ट करना बुद्धिमानों का काम नहीं।

(उत्तर) जो तुम पदार्थविद्या जानते तो कभी ऐसी बात न कहते। क्योंकि किसी द्रव्य का अभाव नहीं होता। देखो! जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष के नासिका से सुगन्ध का ग्रहण होता है वैसे दुर्गन्ध का भी। इतने ही से समझ लो कि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ सूक्ष्म हो के फैल के वायु के साथ दूर देश में जाकर दुर्गन्ध की निवृत्ति करता है।

(प्रश्न) जब ऐसा ही है तो केशर, कस्तूरी, सुगन्धित पुष्प और अतर आदि के घर में रखने से सुगन्धित वायु होकर सुखकारक होगा।

(उत्तर) उस सुगन्ध का वह सामर्थ्य नहीं है कि गृहस्थ वायु को बाहर निकाल कर शुद्ध वायु को प्रवेश करा सके क्योंकि उस में भेदक शक्ति नहीं है और अग्नि ही का सामर्थ्य है कि उस वायु और दुर्गन्धयुक्त पदार्थों को छिन्न-भिन्न और हल्का करके बाहर निकाल कर पवित्र वायु को प्रवेश करा देता है।

(प्रश्न) तो मन्त्र पढ़ के होम करने का क्या प्रयोजन है?

(उत्तर) मन्त्रों में वह व्याख्यान है कि जिससे होम करने में लाभ विदित हो जायें और मन्त्रों की आवृत्ति होने से कण्ठस्थ रहें। वेदपुस्तकों का पठन-पाठन और रक्षा भी होवे।

(प्रश्न) क्या इस होम करने के विना पाप होता है?

(उत्तर) हां! क्योंकि जिस मनुष्य के शरीर से जितना दुर्गन्ध उत्पन्न हो के वायु और जल को बिगाड़ कर रोगोत्पत्ति का निमित्त होने से प्राणियों को दुःख प्राप्त कराता है उतना ही पाप उस मनुष्य को होता है। इसलिये उस पाप के निवारणार्थ उतना सुगन्ध वा उससे अधिक वायु और जल में फैलाना चाहिये। और खिलाने पिलाने से उसी एक व्यक्ति को सुख विशेष होता है। जितना घृत और सुगन्धादि पदार्थ एक मनुष्य खाता है उतने द्रव्य के होम से लाखों मनुष्यों का उपकार होता है परन्तु जो मनुष्य लोग घृतादि उत्तम पदार्थ न खावें तो उन के शरीर और आत्मा के बल की उन्नति न हो सके, इस से अच्छे पदार्थ खिलाना पिलाना भी चाहिये परन्तु उससे होम अधिक करना उचित है इसलिए होम का करना अत्यावश्यक है।

(प्रश्न) प्रत्येक मनुष्य कितनी आहुति करे और एक-एक आहुति का कितना परिमाण है?

(उत्तर) प्रत्येक मनुष्य को सोलह-सोलह आहुति और छः-छः माशे घृतादि एक-एक आहुति का परिमाण न्यून से न्यून चाहिये और जो इससे अधिक करे तो बहुत अच्छा है। इसीलिये आर्यवरशिरोमणि महाशय ऋषि, महर्षि, राजे, महाराजे लोग बहुत सा होम करते और कराते थे। जब तक इस होम करने का प्रचार रहा तब तक आर्यावर्त्त देश रोगों से रहित और सुखों से पूरित था, अब भी प्रचार हो तो वैसा ही हो जाय।

-सत्यार्थ प्रकाश से

शनिवार, 30 सितंबर 2017

हवन का महत्व

हवन का महत्व - IMPORTANCE OF HAVAN :

फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मारती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
(३) हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही. उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।
रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):-
समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।
मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।

हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार :
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य :
होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।
(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ी आदि
(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि
(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि
(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि.

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

सामान्य हवन सामग्री :
तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी.

आप का आज का दिन मंगलमयी हो - आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे - इस कामना के साथ !

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

रूढ़िवाद

ॐ 
जय गुरुदेव 

बेटा ! देखो, बहुत पुरातन काल हुआ जब मैंने ऋषि मुनियों के मध्य विद्यमान होकर यह अमृतों में पान किया कि अमृताम देवो ब्रह्मणा व्रहा यह संसार रूढ़ि और योगिकता में परिणत रहता है।  और यदि विशेष रूढ़ियाँ बन जाती हैं तो वह रूढ़ि इतनी अज्ञानता में परिणत होती हैं कि मानव दर्शन का अभाव हो जाता है।  जब मानव दर्शन का अभाव हो जाता है तो राष्ट्रवाद की प्रणाली भ्रष्ट हो जाती है।  राष्ट्रवाद की प्रणाली भ्रष्ट होने पर उस प्रणाली में अशुद्धियाँ आ जाने के कारण राष्ट्रवाद अपने अपने स्वार्थ में परिणत हो करके वह राष्ट्र और समाज अग्नि के काण्ड बन कर के रह जाते हैं।  विचार आता रहता है कि यह रूढ़ियाँ विशेष नहीं पनपनी चाहियें।  मेरे प्यारे महानंद जी ने मुझे कई कालों में वर्णन करते हुए यह कहा था कि राष्ट्रवाद में ईश्वर नाम पर रूढ़ि नहीं रहनी चाहिए।  ईश्वर के नाम पर तो रूढ़ि होती ही नहीं, जब भी रूढ़ि आती है तो वह अज्ञानता के कारण आती है।  यदि ईश्वर के नाम पर रूढ़ि बनती है तो वह अज्ञानता के मूल में बना करती है, दर्शनों के अभाव में बनती है।  इसलिए हम उस रूढ़िवाद के लिए प्रायः परम्परागतों से अपनी विचारधारा प्रकट करते रहे हैं।  और अपना यह विचार देते रहे हैं कि ईश्वर के नाम पर रूढ़ियाँ नहीं रहनी चाहियें। 

मुझे महानंद जी ने बहुत पुरातन काल में वर्णन करते हुए कहा था कि राजा रावण के काल में ईश्वर के नामों पर भिन्न भिन्न प्रकार की रूढ़ियाँ बन गयीं थीं।  पिता कहीं रूढ़ि को लिए हुए है और पुत्र कहीं रूढ़िवादी बन रहा है।  मानों माता कहीं रूढ़िवादी है तो पुत्री कहीं है।  इस प्रकार का रूढ़िवाद राजा रावण के काल में हुआ था और ईश्वर के नाम के ऊपर उस रूढ़ि का परिणाम यह हुआ कि लंका अग्नि का काण्ड बन कर रह गयी।  आज भी हमारा जो विचार है, वह रूढ़ियों के ऊपर निर्धारित है।  और हम यह वर्णन करते रहते हैं कि प्रभु से प्रार्थना करो कि हमारे जीवन में रूढ़ि न रहे।  
जो ईश्वर का उपासक नहीं होता है वही रूढ़िवाद में परिणत हो जाता है। 










ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी महाराज के प्रवचन से 
(अश्वमेध याग और चंद्र सूक्त , पेज ४८, द्वितीय संस्करण सितम्बर २००६ से )


आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

बुधवार, 30 अगस्त 2017

पूजा का वास्तविक रुप

पूजा क्या है ?

भाइयों बहनों पूजा का ज़िक्र आया है तो यह विचारें कि पूजा चीज़ क्या है? यदि स्त्रीयों की पूजा को लेवें तो जैसा कि हमारे वैदिक साहित्य में भी कहा है कि - 
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। " 

हमें नारियों की पूजा अवश्य करनी चाहिए , तो क्या उनकी आरती उतारी जावे? या हाथ जोड़ कर उनके सामने खड़ा होकर ही उनकी पूजा की जावे? 

नहीं नहीं उनका आदर सम्मान करना, समय समय पर वस्त्राभूषण आदि  द्वारा उनका स्वागत करना व उनको सदा प्रसन्न रखना ही उनकी पूजा है। जहाँ जिन घरों में ऐसा होता है, देवता साक्षात उन गृहों में वास करते हैं। 

अब राम नाम की पूजा कैसे करें? कहा है "रमेति रामः " जो परमात्मा कण कण में बस रहा है, रमा  है, उसे राम कहते हैं। उन परमात्मा को स्तुति, प्रार्थना व उपासना के द्वारा, जप, तप आदि के द्वारा प्रसन्न किया जाता है।  तो भाइयों बहनों आप के मन में प्रश्न होगा कि परमात्मा तो अब हैं ही नहीं वो तो आज से साढ़े आठ लाख वर्ष पूर्व पैदा हुए थे भगवान राम, दशरथ नंदन के रूप में, सियापति श्री राम।  और पुनः आज से साढ़े पांच हज़ार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण देवकी नंदन के रूप में।  

देखो राम नाम के वे दूत जो कि मुक्ति के निकट की परम पुनीत आत्मा थे, उन्हें परमात्मा ने पृथ्वी पर सत्य न्याय, धर्म स्थापना आदि व मर्यादाएं बांधने के लिए परमात्मा ने ही प्रेरित कर जन्म दिलाया था, वो दिव्य आत्मा थीं, परन्तु उनका शरीर हम, तुम जैसा ही था। और परमात्मा तो अब भी हैं।  उनका रूप जैसा मेरी बुद्धि में, आत्मा में आया  जो मैंने जाना है बताता हूँ।  देखो हरेक कार्य का एक कारण होता है - जैसे एक छपी पुस्तक के कारण - १. कागज़, २. कंप्यूटर व ३. मनुष्य हैं।  वैसे ही हरेक पदार्थ के तीन कारण होते हैं।  इसी प्रकार इस सूर्य का क्या कारण है, क्यूंकि बिना बनाये कोई चीज़ बन नहीं सकती, सूर्य को किसने बनाया-  उत्तर है जिसने भी बनाया है उसी को परमात्मा नाम से पुकारता हूँ मैं. ईश्वर एक अदृश्य, वायु के समान सर्वत्र फैली, एक चेतना हैं, अनंत गुणवान व अनंत बलवान हैं. उसी परमात्मा की पूजा हमें करनी चाहिए।  परमात्मा के स्थान पर परमात्मा के सिवा मत किसी को जानो, मत मानो, मत पूजो ।  यह वेद का ही एक वचन है। 

और रहा जड़ अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्रादि की पूजा का विषय, तो इन पदार्थों का सदुपयोग करना ही इनकी पूजा है।  पूजा अर्थात सदुपयोग. इनके गुणों को जानकर  सदुपयोग करना ही इनकी पूजा है।  यहाँ हाथ जोड़ने मात्र से काम न चलेगा, पुरुषार्थ करना होगा। 

रहा अन्य पूजा के विषय - हम अपने माता, पिता, सदगुरु , ऋषि मुनि, सत सन्यासियों का आदर, सत्कार व उनको नाना सुविधाएँ उपलब्ध करवा कर उनकी पूजा ही करते  हैं, गुरु की पूजा है, उनके आदेशानुसार अपने जीवन को बनाना। 

आपका 
अनुभव शर्मा 


गुरुवार, 27 जुलाई 2017

काम पूर्ति

ओ३म्
अथ सुविचारम्


बिना कामना के तो मानव आँखों को भी नहीं झपक सकता। अर्थात् कोई भी पूर्ण निष्काम नहीं हो सकता है। अब भाइयों बहनों जब कामनाएँ हैं तो उनकी पूर्ति का साधन भी किया जाया करता है।

जैसे हमारी कामना है कि हमारा बेटा उच्च शिक्षा पाए व हमारी बेटियों की उच्च घराने में शादियाँ हो अत: उनको उच्च शिक्षा दिलाई जाती है। अपने घर के सारे कार्य अच्छी प्रकार सम्पन्न हो सकें व अच्छी नौकरी व पगार हो इसके लिये हम भी बचपन से युवावस्था तक पढ़ते हैं। अर्थात् कामनाओं की पूर्ति में बच्चों के विवाह तक का समय हमने नष्ट कर डाला। अब रही अधेड़ावस्था व वृद्धावस्था तरह तरह की कामनाएँ लगी ही रहती हैं। पुरे जीवन कामना ही कामनाओं की पूर्ति में लगे रहे।

यदि कोई कहे कि भाई वेदों में कामनाएँ पूर्ण करने के लिए विधि या विधियाँ हैं तो एक भ्राता जी मुझे गालियाँ देने लगे कि अरे दुष्ट! तू कामना पूर्ति के चक्कर में लगा है। उन भ्राता जी से कोई पूछे कि तुम क्या करते हो। क्या ये सभी उपरोक्त नहीं करते।   तो तेरी भी चुप और मेरी भी चुप।

तो भाइयों बहनों कामनाएँ तो पूर्ण करते ही हो कुछ कर्म परम पिता के लिए व अन्य प्राणियों के लिए भी करो। निष्काम कर्म भी करो । भ्राता जी का धन्यवाद जो निष्काम कर्म की और प्रेरित कर रहे थे। परन्तु शब्दों में न कह पाए ।

ओ३म् शान्ति: शान्ति: शान्ति:

स्वप्रेरणा से
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

मंगलवार, 2 मई 2017

जनता का सुझाव

ओ३म्                                                                ओ३म्                                                      ओ३म्

सेवा में,

परम पूज्य श्री बाबा रामदेव जी, श्रीमान् बालकृष्ण जी,
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी,
योगी आदित्यनाथ जी व भाजपा सरकार के रखवालों

देश पर आई आपत्तियों को देश की जनता के सुझाव के अनुसार ढालो। जनता का सुझाव इस प्रकार है-

हमारे यहाँ (बिजनौर जिले की तहसील चांदपुर क्षेत्र) से विधायक कमलेश सैनी जी(भाजपा)  को भारी मतों से जिताकर सरकार में सम्मिलित किया गया है। बिजनौर जिले में जो किसान कृषि कार्य कर रहे हैं व जो साधारणतया 4 एकड़ जमीन तक के किसान हैं उन छोटे किसानों पर कोई बकाया सरकार का नहीं है। क्योंकि छोटे किसान चाहे अपना पेट काटें, तन छांटें, पानी मात्र पियें- अपना दूध घी बेचकर सरकार का ऋण अदा करते हैं। और चन्द बड़े किसान हैं वो सरकार के बकायादार रहते हैं क्योंकि वे लोग जानते हैं और वे जरिये दार लोग हैं। पावर फुल हैं। पहले जो भी सरकार आई वे सरकारें भ्रष्ट थीं। उन्होंने भी बकायादारों के कर्ज माफ किए थे। सुना है आपने भी बकायादारों के कर्जे माफ की घोषणा की है। परंतु छोटे गरीब किसानों को कोई किसी किस्म की भी इम्दाद नहीं मिल पाई।

आज देश के अंदर जीव हत्या बन्द की गई है। ऐसा देखकर हमें यह अनुभव हुआ कि धरती पर रामराज लाने के लिए स्वयं भगवान आ गए हैं। आगे आपसे हमारी प्रार्थना यह है कि हम अपनी गउ माता की सेवा करके उन्हें किस तरह बचा सकते हैं। जब तक हमारे पास साधन नहीं होगा तथा सरकार की मदद हर छोटे किसान को नहीं मिलेगी तब तक हम इस संकट से अपनी गउ माता को कैसे बचाएंगे। जितना साधन था हमारे पास उतने में हमारी गायों को कोई एक करोड़ रुपये देकर भी नहीं खरीद पाया है और उन्हें सताने व मारने की हिम्मत नहीं कर पाया है। क्योंकि हम इसको गउ माता मानते हैं इसलिए। गउओं को मारने वाला इनको खरीद नहीं सकता क्योंकि यह हमारी माँ है। हमारी गर्दन भले ही कट जाए।

जब साधन से अधिक गउएँ हमारे घरों में पैदा होंगी तो हम उन्हें सरकार के अधीन और भगवान के अधीन उनके रस्से निकाल देंगे यह निश्चित है। और कुछ गौपालक किसानों ने यह करना शुरू कर दिया है। हम तहसील चांदपुर के इस्माईलपुर गाँव के बाबा रामदेव के सच्चे सिपाही हैं। और अपने बाबा के शिष्य हैं। हमारा सुझाव भी क्षेत्र के सुझाव के अनुसार भाजपा सरकार से यहीं है कि चाहे सरकार 10,000 रु0 प्रत्येक किसान के माफ करे परंतु ऐसे सभी गरीब किसानों के अवश्य माफ कर देवे या उन्हें सहायता देवे। क्योंकि वे पुराने बकायादार नहीं। यदि आपने ऐसा नहीं किया तो आप में और पुरानी सरकार में अंतर ही क्या रह जाएगा। तथा गौपालकों को गउओं की संख्या की सीमा के आधार पर इम्दाद भी निश्चित कर दी जाए जिससे गउओं का पालन सुचारु रूप से हो पावे अर्थात् गौ पालन के लिए अनुदान की व्यवस्था भी सरकार करे। आपकी अति कृपा होगी।

प्रार्थी                                                       
नैपाल देव जी महाराज आदि                   
गउ माता के सेवक                                  
निवासी ग्राम इस्माईलपुर                       
तह0 चांदपुर जिला बिजनौर                   
उत्तर प्रदेश                                      


द्वारा
अनुभव शर्मा
भू0पू0 स्वदेशी प्रचारक
व त0प्र0 पतं0 योग समिति
जिला बिजनौर

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

प्रश्नोत्तरी भाग १

एक बौद्ध श्रमण :-


भारत के सनातनी बुद्धिजीवी वर्ग को तीन M से बड़ी नफरत है-

मार्क्स 












मैकाले










मैक्समूलर
















उत्तर:

यह सनातनी भाइयों को नहीं आप का इशारा कहीं आर्य समाजियों के लिए तो नहीं?


मैक्समूलर एक वेद भाष्य कार संस्कृत का विद्वान हुआ है उसने वेदों की व्याख्या अंड बरंड कर दी, महाभाष्य का उसे ज्ञान न था अतः उसकी व्याख्या हम आर्यों के लिए प्रामाणिक नहीं।


मैकाले की शिक्षा पद्धति भारत को नौकरी करना व बोस के हुकम बजा लाना तो सिखाती है परन्तु चरित्र लेश भी न दे पाई। नए युवक युवती इसी समस्या से त्रस्त हैं व चरित्रवान बन अपने पैरों पर खड़े होने से वंचित हैं।


मार्क्स की विचार धारा तो अच्छी है परन्तु जिस रूस की यह उपज थी वहाँ भी इनके विचारों से रूसी भाई सहमत नहीं तो हमें सहमति क्यों। क्या हमारे देश में विचारकों की कमी रही है कभी - शंकराचार्य, स्वामी दयानन्द, कबीर, महात्मा बुद्ध, नानक, सुभाष चन्द्र बोस, स्वामी रामदेव जी, ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी जैसे हज़ारों विचारक, समाज सुधारक हमारे यहाँ हुए हैं तो इनकी बातें ही मान हम क्यों चलें।


यह तो वहीं बात हुई कि के पास का Delicious भोजन त्याग कर १०० किमी० दूर भोजन करने जाने का विचारें।



-ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्
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