सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

चाणक्य नीति से

आखिर बुरे राजा के राज्य में भला जनता कैसे सुखी रह सकती है। बुरे मित्र से भला क्या सुख मिल सकता है। वह और भी गले की फांसी सिद्ध हो सकता है।

बुरी स्त्री से भला घर में सुख शांति और प्रेम कैसे रह सकता है। घर तो नर्क बन जायेगा। रात-दिन कलह, नाना प्रकार के क्लेश होंगे।

इसी प्रकार बुरे शिष्य को गुरु लाख पढ़ाये पर ऐसे शिष्य पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ सकता है। चिकने घड़े पर पानी डालना है। अतएव जो जैसा है, वैसा ही रहेगा। बुराई को अच्छाई में बदलना मुश्किल है। सर्प किसी कीमत पर अमृत नहीं उगलेगा, जब भी उगलेगा वह विष ही उगलेगा।



आपका ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

महर्षि देव दयानंद सरस्वती का पूर्व जन्म

 ओ३म्
 जय गुरुदेव
दयानंद बोध दिवस (शिव रात्रि ) स्पेशल 
 

महर्षि देव दयानंद सरस्वती का पूर्व जन्म - अटूटी ऋषि के रूप में





आप क्या उच्चारण कर रहे हो? महर्षि देव दयानंद का जन्म तो टंकारा ग्राम (राजकोट) गुजरात में सन् 1824 ई0 में अमृताबाई के उदर से हुआ है जो कलयुग काल का समय है।

वह त्रेताकाल का समय है - महर्षि देव दयानंद सरस्वती का पूर्व जन्म।
माता है सोमवती - पुत्र को प्यार से सोम भी पुकारती है नाम है अटूटी ब्रह्मचारी। पिता है महर्षि कोलशती।

एक दिन संध्या काल की बेला में गौधृति हो गयी। माता सोमवती अपने स्वामी महषि कोलशती से पूछती है कि स्वामी अभी पुत्र अटूटी नहीं आया है, पिता श्री कहते हैं क्यों चिन्ता कर रही हो- या तो मित्र मंडली में ब्रह्म चर्चा चल रही होगी या फिर समाधि। योग में आसन लगा लिया होगा। फिर उसे समय का ध्यान कहाँ रहता है?

माता सोमवती अपने घर के काम में व्यस्त हो गयी। कुछ समय के उपरांत माता अटूटी ब्रह्मचारी के अध्ययन कक्ष की ओर देखती है कि कक्ष में पीतांबर प्रकाश है, माता समीप जाती है, दीपक प्रज्जवलित नहीं है फिर प्रकाश कैसे? .......... कक्ष के मध्य में अटूटी योग मुद्रा में स्थिर है।

माता आश्चर्यचकित हो गयी। ये कैसा व्यवहार है। पुत्र अटूटी के योग मुद्रा में प्रकाश उत्पन्न हो रहा है। ....... यह मेरा पुत्र नहीं है, यह तो देवों की निधि है, देवों का प्रकाश है, यह साधारण प्राणी नहीं है, यह तो परमात्मा की अनुपम कृपा की कोई ब्रह्म आत्मा है।

माता सोमवती अपने पतिदेव कोलशती महाराज से जाकर कहती है कि हे स्वामी यह अटूटी हमारा पुत्र नहीं है, मैंने इसमें भव्य ज्योति देखी है जो अंधकार को प्रकाश में परिवर्तित कर देती है। महर्षि कोलशती कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है। यह तुम्हारी ममता अति स्नेह दुलार दृष्टि का प्रकाश है। प्रत्येक माता को अपने पुत्र में ऐसे ही प्रकाश प्रतीत होता है। यह तुम्हारा ही पुत्र है कोई विशेष प्राणी नहीं है।

अगले दिवस माता सोमवती से न रहा गया। प्रातःकाल बेला में ही अटूटी से कहा कि तुम मेरे पुत्र नहीं हो। मैंने तुझमें प्रकाश की ज्योति देखी है। तुम तो देवों की निधि हो देव पुत्र हो। ....... यह तो हमारा परम सौभाग्य है कि इतनी पवित्र ब्रह्म देव आत्मा हमारे गृह में आयी है। हे ब्रह्मचारी तुम तो पूजा के योग्य हो।

अटूटी ब्रह्मचारी को आभास हो गया कि माता ने उसे योग मुद्रा में देखा है, इसलिए पुत्र गुणगान गा रही है। और स्वयं की महानता को ओझल कर रही है।

पुत्र की गरिमा माता के चरण कमलों से है, ‘ारीर के अंग उपांग माता के अंगों से ही निर्मित होते हैं।

ब्रह्मचारी अटूटी कहते हैं कि हे माते! तुम तो सत्य में रमण करती रहती हो। सत्य उच्चारण का उपदेश देती रहती हो फिर यह असत्य से विचार कहां से आ गया कि मैं आपका पुत्र नहीं हूँ। देवों की निधि हूँ। प्रकाश का पुंज हूँ।

माता वाटिका में जो पुष्म की सुगंध सौंदर्य सुंदरता होती है, वह उसका अपना गुण नहीं है। वह पुष्प तो स्वयं किसी ‘ााखा लता में लगा है जो उसका पोषण करती है और अपने गुण उसमें समाहित कर देती है।

हे माता यदि मेरे में कोई गुण आया है तो उसको आपने ही प्रदान किया है। मेरे ‘ारीर का पोषण संसर्ग अंग उपांग, ज्ञान सभी आप से ही आये हैं। हे माते इस ‘ााखा पर जो भी पुष्प होता वह भी इतना ही सुगंधित और सौंदर्यपूर्ण होता। इसमें मेरा कोई महत्व नहीं है। यह तो मेरा सौभाग्य है या किन्हीं जन्मों के सुकर्मों का योग है जो इतना महान माता के उदर से उत्पन्न हो गया हूँ। हे माता तू महान है।

ब्रह्मचारी अटूटी के तेजोमयी बुद्धि और विवेकपूर्ण वार्ता सुनकर माता सोमवती का ह्रदय द्रवित हो गया। मुख से वाणी नहीं निकली। पुत्र को कंठ से लगा लिया। नेत्रों से अश्रुपात होने लगा। पुत्र माता के चरणों में ओतप्रात हो गया।

माता कहती है वाह रे प्रभु तु कितना महान् है कैसा दयावान है कितना यौगिक है तेरे जगत का कैसा विधान है, किन जन्मों का सुकर्म आज मेरे समक्ष है।

पुत्र माता की गाथा गा रहा है। माता पुत्र की गाथा गा रही है और दोनों का संबोधन उस परमदेव परमात्मा की ओर है जो इतना महान परोपकारी ज्ञानमयी है।

प्रकाश प्रकट योग- इस विद्या को हनुमान जी भी जानते थे और योगीराज श्री कृष्ण जी भी। परंतु आजकल यह प्रकाश समाधि विद्या कहीं प्राप्त नहीं हो रही है।





संदर्भ ग्रंथ - अमर्त कलश, महामुनि महानंद मेंखला मिशन, संकलन आई0 एस0 तोमर

आपका

ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

बाबा रामदेव जी का उद्देश्य मात्र राष्ट्रोत्थान

बाबा रामदेव जी का उद्देश्य मात्र राष्ट्रोत्थान

(ब्यूरो)

२२ फरवरी बुधवार

भारत स्वाभिमान, किसान पंचायत, योग समिति, महिला योग समिति व युवा भारत के तत्वावधान में वेद मंदिर योग भवन, रामलीला ग्राउंड चाँदपुर में आज ११ बजे से १ बजे तक भारत स्वाभिमान की एक सभा को सम्बोधित करते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी आदरणीय भ्राता विपिन जी ने बाबा रामदेव जी महाराज के उद्देश्यों को संगठन के समक्ष रखा और बताया कि समाज का उत्थान ही संगठन का मूल उद्देश्य है चाहे योग के द्वारा किया जाए या साथ में व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए उदाहरण स्वरूप आइडियल प्रोडक्ट बना समस्त भारत के व्यापारियों को एक नई उन्नत दिशा व दशा बता कर। भ्राता जी ने संगठन की बिजनौर जिले में होने वाली गतिविधियों पर एक निगाह दौड़ाते हुए सभी कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को निर्देशित किया। मीटिंग की अध्यक्षता श्रीमान गजराज सिंह ने की तथा सभा को अंत में उद्बोधित करते हुए गाँव गाँव में योग की स्थाई कक्षाएँ शुरू कराने के लिए विशेष आग्रह किया, संचालन श्रीमान रणधीर सिंह आर्य ने किया तथा इस बात का समर्थन किया कि निःश्रेयस् की प्राप्ति के लिए ही योगी के रूप में सभी को अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए और यह भी बताया कि प्रेय मार्ग उचित नहीं यह मार्ग साधारणतः एक भोगी का मार्ग होता है या एक पितरयाण के मानव का। अतः मोक्ष की प्राप्ति ही मानव का एकमात्र उद्देश्य है इस संसार में। भ्राता विपिन आर्य जी के उद्बोधन का समर्थन करते हुए उन्होंने मुक्ति के लिए निःश्रेयस् अर्थात् निष्काम कर्म को महत्वदायक बताया।

सभा में पतंजलि योगपीठ के सदस्य श्रीमान राकेश कुमार आर्य ने सभा को संबोधित कर संगठन व बाबाजी के कार्यों को सराहा।  तहसील प्रभारी योग समिति अनुभव शर्मा, अमित कुमार, कृष्ण कुमार जी,  जिला युवा प्रभारी राजीव रुहेला, जिला प्रभारी जीतेन्द्र महर्षि, मनोज कुमार जी आदि पदाधिकारियों ने इस सभा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

अन्य उपस्थित जनों में बहन पीयूष चैहान, नेपाल देव महाराज, सोनू कुमार, शिवेन्द्र अग्रवाल आदि अनेक गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

(ब्यूरो चीफ उगता भारत समाचार पत्र)

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

करो योग रहो नीरोग

ओ३म्

पेट की अग्नि

हमारे शरीर में जठराग्नि प्रदीप्त होती रहती है यहीं कारण है कि हम एक विशेष समय के बाद पुनः भोजन करने के लिए प्रेरित और बाध्य हुआ करते हैं। यदि हमारे पेट में यह जठराग्नि नहीं होती तो हम भोजन करने के लिए प्रेरित ही नहीं होते और गरीबों की यह समस्या समाप्त हो चुकी होती कि वे लोग अपने बच्चों की पेट की अग्नि शान्त करने के लिए अर्थात् रोजी रोटी के लिए दिन रात श्रम करते हैं।

जठराग्नि के साथ साथ हमारे पेट में सात सप्ताग्नि और पाँच पंचाग्नि भी होती हैं। इस प्रकार कुल 13 अग्नियाँ हमारे पेट में काम कर रही हैं। सप्ताग्नि तो सात धातुओं के पाचन के काम आती हैं और पंचाग्नि पंचमहाभूतों(अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी व आकाश) का पाचन करती हैं। इन्हीं तेरह अग्नियों के कारण हमारा जीवन चल रहा है।

जब हम भोजन करते हैं तो भोजन के पाचन के पश्चात् रस नाम धातु बनती है। रस के पाचन के पश्चात् रक्त, रक्त से मांस, मांस से मेद, मेद से अस्थि, अस्थि से मज्जा और मज्जा से शुक्र या रज बना करता है। सप्ताग्नियों के कारण इस प्रकार मानव शरीर में सात धातुओं का निर्माण हुआ करता है अर्थात् (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा व शुक्र/रज)।

सातवीं धातु की गतियाँ दो प्रकार की होती हैं - ऊर्ध्व व ध्रुव। यदि सातवीं धातु की गति ऊर्ध्व हो जाती है तो यह शुक्र या रज शरीर में खप जाता है। शरीर में खपने पर यह स्त्रियों में तेज का रूप धारण करता है और पुरुषों में ओज का। तेज के कारण स्त्री शरीर में  - सहनशीलता, माधुर्यता, स्वास्थ्य व सुंदरता के गुण, प्रवेश कर जाते हैं। पुरुषों में ओज के कारण पुरुषों का स्वाभाविक गुण - बल, स्वास्थ्य व वाणी में ओज, प्रवेश कर जाते हैं। इस  सप्तम धातु को योगी तो सहज ही शरीर में खपा लेते हैं परंतु इसकी ध्रुव व ऊर्ध्व गति की उपमा चंद्रमा के शुक्ल व कृष्ण पक्षों से भी की जा सकती है। धातुओं की ऊर्ध्व गति के लिए योग करें। मूलबंध, कपालभाति प्राणायाम, ब्रह्मचर्यासन या वज्रासन के साथ साथ शीर्षासन आदि करें। तब आप अपार शक्तियों के स्वामी हो सकते हैं और एक स्त्री तब समाज को वश में रखने के गुण से ओतप्रोत हो सकती है।

करो योग रहो नीरोग  कर लोगे तब शक्ति, समृद्धि, धन, ऐश्वर्य आदि से भी योग

ओ३म्



आपका
अनुभव आर्यन्

ओ शिव !

प्रभु जी हम आये हैं इस तेरे संसार में।
तू भर दे गोद को हमरी अपने गिफ्टों के दान से।
तू है बहुत बड़ा दानी हम भी मांगें तुझसे।
देदे हम को वो सब कुछ जो कुछ चाहें हम तुझ से।
सुना है प्रभु तू ही दिलाता है सब कुछ इस संसार में।
पर हमको मांगना है पड़ता जो भी अपनी हो अरदास।
इसलिए सुन लो विनती ए भगवन हम।
हैं इस जग में अनाथ प्रभु मांगें तेरा हाथ।
मैं तो मांग चुका हूँ तुझसे अब तो पूरी कर दो आस।
सुना है तू करता है भक्त अपनों की हर पल पूरी आस।
तू देदे हमको अपनी दया का दान।
और देदे हम को तू अपनी भक्ति की भी आस।
देदे हमको संसारी गिफ्ट्स जो हम चाहें नाथ।
भर दे झोली भक्त अपने की कर दे पूरी आस।



आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

For Law of Protection of Female

सेवा में ,

आदरणीय ,

1. राष्ट्रपति जी,
2. प्रधानमंत्री जी ,
3. मुख्यमंत्री जी, उत्तर प्रदेश ,
4. जिलाधिकारी जी, बिजनौर, उत्तर प्रदेश ,
5. सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस , बिजनौर, उत्तरप्रदेश ,
 तथा
6. न्यायाधीश जी, सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली ,

विषय: स्त्रियों की सुरक्षा का कानून बनवाने के सम्बन्ध में

महोदय ,

निवेदन यह है कि आप माननीय, प्रशंसित,   बुद्धिवान, मेधावान, ज्ञानवान,  पुण्यकर्मी  तथा ऐश्वर्यवान हैं. हमारे देश में समय समय पर नारी अपहरण, बलात्कार, नारी अपमान, हत्या, दुराचार व गाली गलोच आदि घटनाएँ घटती रहती हैं.

आज से लगभग १२,०५,३३,०००  बर्ष पूर्व  प्रथम राजा, माननीय राजर्षि महाराजा वैवस्वत मनु महाराज ने अपने समय में अयोध्या का निर्माण करते हुए यह संविधान बनाया था कि किसी भी पशु का वध नहीं होना चाहिए . तब पशु वध भारत में नहीं हुआ करता था . इसी प्रकार का नियम यदि आज हमारे देश, हिन्दुस्तान, भारत या इंडिया में क़ानून के रूप में बन जाये तो यह राक्षसी प्रकृति हमारे देश से बाहर हो सकती है . यह मेरा मानना है . और यह ही भारत की हिस्ट्री भी कहती है . तथा वह क़ानून है 'स्त्रियों की सुरक्षा का क़ानून' या 'Law of  Protection of Female'.

मैंने इस विषय में अपने ब्लॉग में भी लिखा है उस पोस्ट का टाइटल है 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ '.
इस समय मैं पूर्ण होशो हवास में लिख रहा हूँ तथा जो कह रहा हूँ उसे अन्यथा न लेना . यदि आप मेरे विषय में डिटेल्ड जानकारी चाहते हैं तो मेरे ब्लॉग mithsofhinduism.blogspot.in में मेरा पेज 'About Me' तथा 'Curriculum Vitae' पढ़ लें जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं.

इस क़ानून के बारे में मैंने जो पोस्ट 'Beti Padhao Beti Bachao' बनायी है उसका ब्लॉग एड्रेस है mithsofhinduism.blogspot.in 

अधिकतम बातें मैं इस समय तो लिखित ही कर रहा हूँ . मैं साधारण व विशेष परिस्तिथियों में सत्य बोलने को ही महत्त्व देने वाला एक अदना सा ब्राह्मण जाति  से सम्बन्ध रखने वाला आदमी हूँ . मेरा नाम पं ०  अनुभव शर्मा आत्रेय 'भवानन्द आर्य' है . मेरा जन्म २ अक्टूबर १९७३ को ग्राम इस्माइलपुर , रेलवे स्टेशन चांदपुर स्याऊ, जिला बिजनौर, उत्तर प्रदेश में हुवा था .

हमारे शास्त्रों में भी कहा है 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ' यदि अपने देश भारत को पूर्ण स्वतंत्र, खुशहाल, पूरी दुनिया में अव्वल, व आर्थिक स्थिति में भी प्रथम श्रेणी में लाना है तो देवताओं का वास आवश्यक है . देवता का अर्थ यहाँ वैज्ञानिक, ज्ञानवान, बुद्धिवान तथा विद्वान से है इस का अर्थ अदृश्य ताक़तों से  न लें . 

या तो इस क़ानून को बनवाया जाए वरना हमारी माताओं, बहनों और पुत्रियों का भविष्य उज्जवल न होने से आने वाली भारत की मॉडर्न संतति देश भारत को विदेशियों के चंगुल में फंसने से रोक न पायेगी . भारतीय नारी को समानता का अधिकार है परन्तु उसकी आजीवन सुरक्षा का कोई क़ानून नहीं है वरना हमारे देश में दिन दहाड़े बलात्कार, हत्या व अपहरण की घटनाएँ कभी न होतीं .
माननीय इसके लिए अनेकों एक्ट्स की पूरी विधि सहिंता तैयार की जानी चाहिए . आप समझ सकते हैं कि यदि माँ सुरक्षित है तो हमारा वर्तमान व भविष्य दोनों सुरक्षित हैं. आप जैसे महापुरुषों की महान कृपा के कारण ही हमारे देश में नारी सुरक्षा, पालन, पोषण, शिक्षा, चिकित्सा, बढ़ावा व नौकरियों में वरीयता आदि योजनाओं के द्वारा उनका जीवन सुधरा तो है मगर सभी का नहीं .

स्त्रियां स्वभाव से मृदु, प्रेमी, प्रसन्नमुख व विवादों को समाप्त कराने वाली होती हैं . उनके भीतर 'तेज' एक ऐसा पदार्थ होता है जो पुरुषों में नहीं होता . इसी 'तेज' के कारण स्त्रियां सहनशील हुवा करती हैं.
मुझे अपने बारे में बनाना आवश्यक है कि मैं तीन भाषाओँ का ज्ञाता हूँ - हिंदी, अंग्रेजी व उर्दू . तथा संस्कृत भी बहुत कुछ जानता हूँ परन्तु पूरी तरह से नहीं . कंप्यूटर का भी मुझे अच्छा ज्ञान है . मैंने अभी तक प्राइवेट रूप से अध्यापन कार्य किया है .
या तो कानून संहिता बनायी जाये वरना उन ब्लॉग्स को अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, चीन आदि सभी देशों के रीडर्स पढ़ते हैं . आखिर हमारे देश की भी कोई इमेज है . और जब तक मैं जीवित हूँ लिखना नहीं छोड़ूंगा . मैंने भी इंग्लिश से एम ए किया है . जब तक मैं जीवित हूँ अपने थोड़े बहुत ज्ञान व बुद्धि जो भी है, के द्वारा चुप बैठने वाला नहीं हूँ . मैं भी कुछ न कुछ करता ही रहूँगा .
माननीय प्रधान मंत्री जी श्री नरेंद्र मोदी जी, आपको तो मैंने ट्वीट भी किया था तो अब तक यह क़ानून बनवाने के लिए आपने समय क्यों नहीं निकाला या आदेश क्यों नहीं पारित करवाया संसद में . क्या प्रजातंत्र नहीं हैं हमारे देश में? या सब लोग आसन (चुप्पी साध लेना) विधि अपनाये बैठे रहेंगे . आखिर हमारे देश की गरिमा का प्रश्न भी है .

नम्र निवेदन यह है हे महापुरुष! यह क़ानून संहिता बनवाने के लिए जल्दी से जल्दी संसद में आदेश पारित कर, स्त्रियों को सुरक्षा दी जाये वर्ना भारत देश की अधिकतम नारियां भूख, गरीबी, अपमान, गाली गलोच, बलात्कार, हत्या आदि व पालन पोषण व शिक्षा ठीक से न हो पाने से पीड़ित हैं.
आपकी अति कृपा होगी। 
आप चाहे तो मुझे फांसी लगवा दें परन्तु यह क़ानून आपको बनवाना पड़ेगा .

धन्यवाद।

"नामुमकिन अब मुमकिन है।"
"मोदी है तो मुमकिन है।"

निवेदक
अनुभव शर्मा 'भवानन्द'
जिला कारागार , बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत


३१ जनवरी , २०१५  को

आधुनिक नारियों के कर्त्तव्य व अधिकार

हमारी पूर्वज नारियां 
तथा 
आधुनिक नारियों के कर्त्तव्य व अधिकार 

Part 1

हमारी आदर्श पूर्वज नारियों में माता गार्गी, माता मदालसा, सती सावित्री, माता सीता, माता कौशल्या, माता अनुसूया, माता कुंती, माता द्रौपदी, माता अरुंधति आदि का नाम शीर्ष पर रहा है।   पुराने समय में अनेकों महान नारियां व ऋषिकाएँ समय समय पर प्रभु भक्त रही हैं। 

मीराबाई, झाँसी  की रानी लक्ष्मीबाई, महादेवी वर्मा, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल व किरण बेदी जैसी महान नारियां हमारे देश भारत का गौरव व राष्ट्र की अग्रगामी आदर्श नारियां रही हैं तथा अब भी हैं।  

जब शरीर में, भोजन के पाचन के बाद रस, रक्त, माँस , मेद  , अस्थि, मज्जा तथा शुक्र आदि सात धातुएं बना करती हैं तो ब्रह्मचर्य की उर्ध्व गति होने पर व उसके शरीर में खपने पर 'ओज' का निर्माण पुरुषों में हुआ करता है जिससे वात -पित्त-कफ़  दोष सम होने से स्वस्थता व बल आदि प्राप्त होते हैं।  परन्तु नारी में सप्तम धातु के पाचन पर 'तेज' बना करता है।  जिस तेज के कारण उनमे सहनशीलता, वाणी में मृदुता, सुंदरता व विशेष आकर्षण वाला गुण प्रकट होता है।  ये गुण हमारी माताओं, बहनों एवं पुत्रियों की ही धरोहर हैं।  नारी किसी भी प्रकार की हो समाज व परिवार के लिए एक अमूल्य रत्न हैं।  इन्हीं को ही वैदिक साहित्य में लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है।  और यदि इनकी पूजा अर्थात आदर, सत्कार व समय समय पर वस्त्राभूषण, अन्न आदि पदार्थों से इनकी सेवा की जाया करे तो ये प्रत्युपकारी के लिए व समाज व राष्ट्र के लिए अत्यधिक कल्याणकारी  हुआ करती हैं।  कहा भी है -

'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'

जहाँ नारियों की पूजा अर्थात सेवा एवं सत्कार हुआ करता है वहां साक्षात देवता अर्थात विद्वान, वैज्ञानिक व महान मनुष्यों का तथा ऐश्वर्य, कीर्ति, सदाचार आदि गुणों व परम कल्याण आदि का वास होता है। 

स्त्रियां समाज, राष्ट्र व साक्षात परमात्मा की भी धरोहर हैं / ये तीन कुलों का जीवन बनाने में सक्षम होती हैं।  बाबा रामदेव जी एक भजन में कहते हैं -

'चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है। 
हर बाला  देवी की प्रतिमा, बच्चा बच्चा राम है। '

और वैसे भी नारी राष्ट्र का आधार हुआ  करती है।  कहते हैं -

'माता ही गुरु सबसे पहली जो प्यार का पाठ पढ़ाती है।  '

नारी ही हमारी माता के रूप में है।  हमारे समस्त ऋषि मुनियों, वैज्ञानिकों, कवियों, इंजीनियरों, गणितज्ञों, दार्शनिकों, साधुओं व साक्षात भगवान राम व भगवान कृष्ण आदि को भी माताओं ने ही जन्म दिया है तथा उन्हें बचपन में ही मधुरता, सदाचार व चरित्र और कर्त्तव्य का ऐसा ऊँचा पाठ पढ़ाया कि वे इस प्रकार के बने।   माता ही हमारी पूजनीय, सत्कारणीय , श्रद्धा व मधुर वाणी की देवी, सबसे प्रथम गुरु हैं।  

संतान को जन्म देना व उनका पालन पोषण व शिक्षा स्त्रियां ही कर सकती हैं क्योंकि वे जननी, मधुर भाषिणी व अत्यंत सहनशील होती हैं।

आजकल नारियों को डांस करना कोई कल्चरल एक्टिविटी नहीं और न ही कोई ये संस्कृति के लक्षण हैं।  यह तो मात्र नारी जीवन के साथ एक घिनौना मज़ाक है।

पूर्व नारी माता मदालसा ऐसी हुयी थीं जिन्होंने मात्र पांच संतानों में से प्रारम्भ के तीन ५ वर्ष की छोटी आयु में ही सन्यासी व तपस्वी बना दिए थे जो ऋषि दालभ्य, प्रव्हाण व शिलक नाम से प्रसिद्द हुए थे।  क्योंकि ये रानी थीं अतः अपने राजा पति के अनुरोध पर पाँचवाँ पुत्र राजा के रूप में उत्पन्न किया जिसने बहुत लम्बी अवधि तक राज्य भोगा तथा अंत में वैरागी हो संन्यास भी ले लिया।  ऐसी थीं माता मदालसा।

हमारी पुत्रियों के आदर्श हेमा मालिनी, श्री देवी, जूही चावला या करिश्मा कपूर न होकर अपनी पूर्वज नारियां होनी चाहिएं।  यहीं हमारा धर्म है और ये ही संस्कृति।  प्रत्येक नारी को वैदिक, औपनिषदिक, वैज्ञानिक व योग की शिक्षा के साथ साथ गणित व  सदाचार की शिक्षा तथा पूर्वज आदर्श नारियों का भी ज्ञान कराना चाहिए।

समस्त भारत देश की माताओं, बहनों व पुत्रियों को नमन करता हुआ  में  आज अपनी लेखनी यहीं शांत कर रहा हूँ।


Part 2


देवियाँ, देवकन्याएँ, स्त्रियां या नारियां तीन प्रकार की पायी जाती हैं।  एक वे जो माता, पिता तथा गुरु के आदेशों व मन के अनुकूल ही अपने कर्म किया करती हैं।  दूसरी जो इनके आदेशों व सलाह के द्वारा अपना जीवन बनाती हैं।  तीसरे प्रकार की नारियां माता, पिता, गुरु, विद्वान व सदाचारी तथा सत्यवादी अतिथि या पति (यदि विवाहित हैं तो ) इन पांच के ही आदेश, मनोभाव आदि के द्वारा न चलकर स्वेच्छा पूर्वक अपने मन के आदेशों के ही अनुकूल अपना जीवन बनाती हैं।  ये देवकन्याएँ स्वेच्छाचारिणी होती हैं।

परन्तु ये तीनो ही प्रकार की देवियाँ समाज, परिवार व कुटुम्बियों की नीव हैं तथा सत्कारणीय होती हैं तथा समाज व राष्ट्र की महान धरोहर तथा राष्ट्र के लिए लाभदायक होती हैं।  ये तीनों ही देवी की साक्षात प्रतिमा हैं।  अतः सम्मान, रक्षा, प्रतिष्ठा व कर्मानुसार राज्य में अधिकार प्राप्त करने योग्य होती हैं।  इन सभी प्रकार की स्त्रियों की सुरक्षा करना हमारे देश भारत का कर्त्तव्य है।  अतः हमारे देश में नारी सुरक्षा की गारंटी हेतु क़ानून, विधि संहिता में होना चाहिए जिसको हम 'Law of Protection of Female' नाम दे सकते हैं।

इस क़ानून में सभी नारी जाति के कल्याण हेतु व्यवस्था होनी चाहिए जिससे भ्रूण हत्या, बालिका शिक्षा, विज्ञान की पढ़ाई, आदर्श वैदिक कन्याओं व बहनों के चरित्र का पाठ, नौकरी, विवाह, योग तथा आध्यात्मिक विज्ञान आदि से सम्बंधित गारंटी सरकार उनको दे।  तथा गाली गलौंच, लूट, अपहरण, बेइज़्ज़ती, हत्या तथा बलात्कार आदि से सुरक्षित रहने की गारंटी उनको मिले।

आपका अपना
अनुभव शर्मा आर्य
१/२/२०१५ को

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

संध्या(प्रातःकालीन और सांयकालीन)

संध्या(प्रातःकालीन और सांयकालीन) - भाग १

वेद के अनुसार हमारे ऋषियों ने कहा है कि हमें प्रातः व सांय संध्या करनी चाहिए। एक दिन में दो बार संध्या की जाती है। महर्षि दयानंद जी ने जो संध्या के २१ मन्त्र बताये हैं ये वे ही मन्त्र हैं जो की आदि ब्रह्मा जी ने अपने शिष्यों को दिए थे।  यह आश्चर्यजनक परंतु सत्य है। 

जैसा कि आदि गुरु ब्रह्मा ने कहा है वास्तव में प्रत्येक वेद मन्त्र अनेक अर्थ रखता है। लेकिन जैसा हमें स्वामी दयानंद सरस्वती के वेद भाष्य में देखने को मिलता है। हम सामान्यतः वेद मन्त्र का एक ही अर्थ पाते हैं।   यद्यपि कुछ मन्त्रों का दो दृष्टियों से भी अर्थ देखने को मिलता है - आध्यात्मिक और सांसारिक. वास्तव में वेद मन्त्रों को समझने के लिए एक महान गुरु की आवश्यकता है। आजकल इस प्रकार के गुरु संसार में उपलब्ध नहीं हैं। यद्यपि गहन खोज करने पर कोई छुपा हुआ गुरु इस प्रकार का मिलना संभव तो है।  अब मैं आप को वैदिक संध्या के मन्त्रों की व्याख्या बताता हूँ। इस समय मैं निम्नलिखित मन्त्र ले रहा हूँ जो कि ब्रह्माण्ड की रचना पर आधारित हैं-
ॐ ऋतं च सत्यन्चाभि द्धातापसो अध्यजायत ततो रात्र्य जायत ततः समुद्रो अर्णवः
।।6।।
वेदों के प्रकाशक परमात्मा ने अपनी अनंत सामर्थ्य के कुछ भाग से कारण रूप प्रकृति से कार्य रूप जगत की रचना की और अपने सहज स्वभाव से जल कोष की रचना की ।
ॐ समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत अहोरात्रणि विदधद्विशस्य मिषतोवशी।।7।।
समुद्र रचना के पश्चात प्रभु ने ऐसी गति को उत्पन्न किया कि जिससे कि दिन रात और संवत्सर के बारह महीने उत्पन्न होते हैं।
ॐ सूर्या चन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत्  दिवं पृथिवीं चान्तरिक्षमथौ स्वः.।8।।

पूर्व कल्प कि भांति प्रभु ने इस कल्प में भी सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, द्यौ और पृथ्वी आदि को रचा।
इस प्रकार में मैंने आपको बताया कि कैसे इस ब्रह्माण्ड की रचना हुई. ये मन्त्र संध्या के मुख्य अंग हैं.

जिसमें हम सृष्टि रचना के विषय में नियमित रूप से विचार किया करते हैं।



संध्या(प्रातःकालीन और सांयकालीन) - भाग २ 


जो वेद को पढता रहे और उसके अनुसार आचरण न करे ऐसे आचारहीन पुरुष को वेद भी पवित्र नहीं करते. चाहे उसने वेदों क ६ अंगों सहित भी पढ़ा हो। ऐसे अनाचारी मनुष्य को वेद ज्ञान मृत्यु के समय इस प्रकार छोड़ देता है जैसे कि पक्षी पंख निकलने पर अपने प्रिय घोंसले को त्याग देता है।
अतः हमें अच्छी प्रकार समझ लेना चाहिए कि परमेश्वर की सत्ता, धर्म, पुनर्जन्म तथा कर्म फलादि के प्रति अपनी आस्था रखते हुए वेदानुकूल आचरण धारण करते हुए सदाचारी जीवन व्यतीत करना ही इस मानव जीवन का एक मात्र उद्देश्य है।
परमात्मा का रचाया हुआ ज्ञान और विज्ञान वेद मन्त्र में निहित रहता है परन्तु परमात्मा का जो विशाल विज्ञान है अथवा ज्ञान है उसकी रचना का नृत है। उसके लिए मानव सदैव विचरता रहता है। संध्या का अभिप्राय है कि हम परमपिता परमात्मा के ब्रह्ममई विचारों में, उसकी उपासना में रत हो जाएँ  और उपासना करते रहें कि हे देव! तू महान और विचित्र बन कर के हमारे अंग संग रहने वाला है।

 (मनसा परिक्रमा मन्त्र)
अब मैं संध्या के ६ मन्त्रों की व्याख्या लिख रहा हूँ।

ॐ प्राची दिगग्निरधिपतिरासितो रक्षितादित्या इषवः. तेभ्यो नमोSपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु. यो३अस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः।।9

हे सर्वज्ञ परमेश्वर! आप हमारे सम्मुख पूर्व दिशा की ओर विद्यमान हैं. स्वतंत्र राजा और हमारी रक्षा करने वाले हैं. अपने सूर्या को रचा है जिसकी बाण रुपी किरणों द्वारा पृथ्वी पर जीवन रुपी साधन आता है. आपके उन अधिपत्य, रक्षा और इन जीवन रुपी प्रदान के लिए प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है. जो अज्ञान वश हमसे द्वेष करता है अथवा जिससे हम द्वेष करते हैं, उसे आपके न्याय रुपी सामर्थ्य पर छोड़ देते हैं।  प्रभु पूर्व दिशा में विद्यमान अग्नि रूप कहलाते हैं।

ॐ दक्षिणा दिगिन्द्रोSधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषवः. तेभ्यो नमोSपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्योनम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु. यो३अस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.।10
हे परम ऐश्वर्यवान भगवन! आप हमारे दक्षिण दिशा की और व्यापक हैं. आप हमारे राजाधिराज और भुजंग आदि  बिना हड्डी वाले जंतुओं की जो पंक्ति है उनसे हमारी रक्षा करते हैं. और ज्ञानियों के द्वारा हमें ज्ञान प्रदान कराते हैं. आपके उन अधिपत्य, रक्षा और इन जीवन रुपी प्रदान के लिए प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है. जो अज्ञान वश हमसे द्वेष करता है अथवा जिससे हम द्वेष करते हैं, उसे आपके न्याय रुपी सामर्थ्य पर छोड़ देते हैं।  प्रभु दक्षिण दिशा में विद्यमान होकर इंद्र कहलाते हैं।
ॐ प्रतीची दिग्वरुणोSधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नमिषवः. तेभ्यो नमोSपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु. यो३अस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः।11
हे सौंदर्य के भण्डार! आप पश्चिम दिशा की और हैं. हमारे महाराज हैं, बड़े बड़े हड्डी वाले और विषधारी जंतुओं से हमारी रक्षा करते हैं. और अन्नादि साधनों के द्वारा हमारे जीवन कि रक्षा करते हैं. आपके उन अधिपत्य, रक्षा और इन जीवन रुपी प्रदान के लिए प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है. जो अज्ञान वश हमसे द्वेष करता है अथवा जिससे हम द्वेष करते हैं, उसे आपके न्याय रुपी सामर्थ्य पर छोड़ देते हैं।  प्रभु पश्चिम दिशा में विद्यमान होकर हमें भोजन, अन्नादि पदार्थों के देने वाले हैं इसलिए वरुण कहलाते हैं।
ॐ उदीची दिक् सोमोSधिपतिः स्वजो रक्षिताशनिरिषवः. तेभ्यो नमोSपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु. यो३अस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.।12
हे पिता! आप हमारे बायीं उत्तर दिशा की ओर व्यापक और हमारे और हमारे परम ऐश्वर्य युक्त स्वामी हैं. आप स्वयंभू और रक्षक हैं. आप ही विद्युत् द्वारा समस्त संसार के लोक लोकान्तरों की गति तथा संसार के प्राणी मात्र में रमण कर रुधिर को गति प्रदान कर प्राणों की रक्षा कराते हैं.  आपके उन अधिपत्य, रक्षा और इन जीवन रुपी प्रदान के लिए प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है. जो अज्ञान वश हमसे द्वेष करता है अथवा जिससे हम द्वेष करते हैं, उसे आपके न्याय रुपी सामर्थ्य पर छोड़ देते हैं।  परमात्मा हमारे उत्तर में विद्यमान होकर हमें ज्ञान के देने वाले हैं अतः सोम कहलाते हैं।  
ॐ ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता विरूध इषवः. तेभ्यो नमोSपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्योनम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु. यो३अस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः ।13
हे सर्व व्यापक प्रभो आप नीचे की दिशा के देशों में विद्यमान जगत के स्वामी हैं. आप हरित रंग वाले वृक्षादी और बेलों के साधन द्वारा हमारे प्राणों की रक्षा करते हैं.  आपके उन अधिपत्य, रक्षा और इन जीवन रुपी प्रदान के लिए प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है. जो अज्ञान वश हमसे द्वेष करता है अथवा जिससे हम द्वेष करते हैं, उसे आपके न्याय रुपी सामर्थ्य पर छोड़ देते हैं।  परमात्मा नीचे की और विद्यमान हो , नम्र होकर हमारा पालन करने वाले हैं अतः विष्णु कहलाते हैं। 
ॐ ऊर्ध्वा दिग बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता वर्षमिषवः. तेभ्यो नमोSपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु. यो३अस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः ।14
हे महान प्रभो! आप ऊपर की दिशा की ओर के लोकों में व्यापक पवित्रात्मा, हमारे स्वामी और रक्षक हैं. आप वर्षा करके हमारी कृषि को सींचते हैं. जिससे हमारे जीवन का साधन खाद्यान्न उत्पन्न होता है.  आपके उन अधिपत्य, रक्षा और इन जीवन रुपी प्रदान के लिए प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है. जो अज्ञान वश हमसे द्वेष करता है अथवा जिससे हम द्वेष करते हैं, उसे आपके न्याय रुपी सामर्थ्य पर छोड़ देते हैं।  परमात्मा हमारे ऊपर की और विद्यमान होकर गुरुओ के भी गुरु परमगुरु हैं अतः बृहस्पति कहलाते हैं। 



यह वह संध्या है जिससे ऋषि बन जाते हैं, जिससे देवता बन जाते हैं, विष्णु बन जाते हैं, शिव बन जाते हैं।  यह वह संध्या है जिसके प्रभाव से मानव भगवान राम और भगवान कृष्ण के जैसा हो जाता है।

अतः मित्रों नित्य प्रातः संध्या अवश्य करनी चाहिए।  इस संध्या में कुल २१ मन्त्र होते हैं।


आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

सत्य व असत्य की परीक्षा

सत्य व असत्य की परीक्षा
अब जो जो पढ़ना-पढ़ाना हो वह-वह अच्छी प्रकार परीक्षा करके होना योग्य है। परीक्षा पाँच प्रकार से होती है-

1- जो-जो ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव और वेदों से अनुकूल हो वह-वह सत्य और उससे विरुद्ध वह असत्य है।
2- जो जो सृष्टि क्रम से अनुकूल वह-वह सत्य और जो-जो सृष्टि क्रम से विरुद्ध है वह सब असत्य है। जैसे कोई कहे कि बिना माता पिता के योग से लड़का उत्पन्न हुआ ऐसा कथन सृष्टिक्रम से विरुद्ध होने के कारण सर्वथा असत्य है।
3- आप्त अर्थात् धार्मिक विद्धान्, सत्यवादी, निष्कपटियों का संग उपदेश के अनुकूल है वह-वह ग्राह्य और जो-जो विरुद्ध है वह अग्राह्य है।
4- अपने आत्मा की पवित्रता विद्या के अनुकूल अर्थात् जैसे अपने को सुख प्रिय और दुःख अप्रिय है वैसे ही सर्वत्र समझ लेना चाहिए कि मैं भी किसी को दुःख दूँगा तो वह भी अप्रसन्न और प्रसन्न होगा।
5- आठों प्रमाण अर्थात् प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, ऐतिह्य, अर्थापत्ति, सम्भव और अभाव के द्वारा सत्य को जान लेवें।

प्रत्यक्ष - को तो सभी जान लेते हैं अर्थात् यदि कोई बात इंद्रियों से स्पष्ट पता चल रही हो तो वह प्रमाण होती है।
अनुमान - जो प्रत्यक्षपूर्वक अर्थात् जिसका कोई एक देश वा सम्पूर्ण द्रव्य किसी स्थान वा काल में प्रत्यक्ष हुआ हो उसका दूर देश में सहचारी एक देश के प्रत्यक्ष होने से अदृष्ट अवयवी का ज्ञान होने को अनुमान कहते हैं। जैसे बादलों को देख कर वर्षा का अनुमान होता है और जैसे दूर देश में धुंआ उठते देख अग्नि के जलने का ज्ञान होता है आदि आदि।
उपमान - जो प्रसिद्ध प्रत्यक्ष साधर्म्य से साध्य अर्थात् सिद्ध करने योग्य ज्ञान की सिद्धि करने का साधन हो उसको उपमान कहते हैं। जैसे किसी ने किसी भृत्य से कहा कि तू देवदत्त के सदृश विष्णुमित्र को बुला ला। वह बोला कि मैंने उसको कभी नहीं देखा है उसके स्वामी ने कहा कि जैसा यह देवदत्त है वैसा ही वह विष्णुमित्र है। जब वह वहां गया तो देवदत्त के सदृश उसको देख निश्चय कर लिया कि यहीं विष्णुमित्र है, उसको ले आया।
शब्द प्रमाण - जो आप्त अर्थात् पूर्ण विद्धान धर्मात्मा, परोपकार प्रिय, सत्यवादी, पुरुषार्थी, जितेंद्रिय पुरुष जैसा अपने आत्मा में जानता हो और जिससे सुख पाया हो उसी के कथन की इच्छा से प्रेरित सब मनुष्यों के कल्याणार्थ उपदेष्टा हो जिसने पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त ज्ञान प्राप्त होकर उपदेष्टा होता है। जो ऐसे पुरुष और पूर्ण आप्त परमेश्वर के उपदेश वेद हैं, उन्हीं को शब्द प्रमाण जानो।
एतिह्य- इतिहास
अर्थापत्ति- जैसे किसी ने किसी से कहा कि बद्दल के होने से वर्षा और कारण के होने से कार्य उत्पन्न होता है इससे बिना कहे यह दूसरी बात सिद्ध होती है कि बिना कारण कार्य कभी नहीं हो सकता।
संभव- सृष्टि क्रम केे अनुकूल होने वाली बातें ही संभव कहलाती हैं।
अभाव- जैसे किसी ने किसी से कहा कि हाथी ले आ। वह वहां हाथी का अभाव देखकर जहां हाथी था वहां से हाथी ले आया।


(सत्यार्थ प्रकाश - तृतीय समुल्लास से)

आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

देव दयानंद


स्वामी दयानंद सरस्वती एक नाम जिसने 1850-1900 के समय मे गुलाम भारत को एक नवचेतना प्रदान की।



महाभारत के बाद 5000 सालो से चलते आ रहे सत्य सनातन वैदिक धर्म के पतन को रोकने का एक प्रभावी और ठौस प्रयास किया।

पर आज देश उन्हें भुलता जा रहा है या
कहे किसी साजिश के तहत उन्हें और उनके जैसे अनेक क्रांतिकारीयो को आम जनता के दिलो से मिटाने का प्रयास किया जा रहा है।

पर आज के इंटरनेट के युग मे यह सम्भव नहीं कि आप अपने महापुरुषों के बारे मे जानना चाहे और कोई आप को रोक दे।

इसी के तहत मेरा यह छोटा सा प्रयास आप चाहे तो अनेकानेक भारतीयो तक पहुँच सकता है।




1. जिसने राम प्रसाद बिसमिल को नशा(सिगरेट) छुङाकर देश भक्ति की तरफ प्रेरित किया
2. जिसने एक भटके हुए नौजवान को स्वामी श्रद्धानंद बना दिया (जिन्होंने गुरूकुल कांगङी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के संस्थापक की तथा कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन की अध्यक्षता की) 
3. जो भगत सिंह के दादा (जिन्होंने अपने दोनों पुत्र तथा पौते को स्वतंत्रता आंदोलन मे लगा दिया) के प्रेरणास्रोत थे
4.  लाला लाजपत राय स्वयं लिखते है की इनकी वजह से मेरा परिवार मुस्लिम बनने से बच गया
5. जिनकी पुस्तक से बाल गंगाधर तिलक को स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी

6. जिन्होंने वेदों के प्रमाण देते हुए स्त्रियों दलितों शुद्रो को पढ़ने का अधिकार दिलवाया
7. जिन्होंने वेदों के प्रमाण देते हुए हिन्दू समाज मे जातिवाद, अन्धविश्वास, सतिप्रथा, अस्पर्शता, पाषाण पुजा आदि का विरोध किया
8. जिन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश मे बाईबल कुरान पुराण आदि की समीक्षा की तथा इनमें लिखे अवैज्ञानिक अतार्किक बातो का संकलन किया और इन अवैदिक मतो की वैचारिक आधार पर धज्जीयाँ उङा दी
9. जिन्होंने सत्यार्थ प्रकाश मे वेदों की सिद्धांतो सरल भाषा मे लोगों मे प्रचार हेतु लिखा तथा सत्यार्थ प्रकाश मे तर्को सहित वेदों की सर्वोच्चता साबित की
10. जिन्होंने (स्त्रियों और शुद्रो सहित) सबको वेद पढ़ने का अधिकार होने की बात कहीं ( उस समय सिर्फ ब्राह्मणो को वेद पढ़ने का अधिकार होता था) तथा 'वेदों की ओर लोटो' का नारा दिया
11. जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की जिसे आजादी से पहले अंग्रेज क्रांतिकारियो का अड्डा कहते थे
12. जो आधुनिक समय मे प्रसिद्ध स्वामी रामदेव, महाशय धर्मपाल(MDH), हीरो ग्रुप के संस्थापक मुंजाल जी आदि अनेक भद्रपुरूषो के प्रेरणास्त्रुत है
13. जिसने आज से 140 वर्ष पुर्व अपनी एक छोटी सी पुस्तक गौकुरणानिधि मे गाय को आर्थिक तौर पर लाभकारी सिद्ध कर दिया था
14. जिन्होंने श्याम जी कृष्ण वर्मा को प्रेरित किया कि वो लंदन जाकर वहाँ पढ़ रहे भारतीयो को स्वतंत्रता आंदोलन से जोङे।इन्होंने फिर वहां वीर सावरकर, मदन लाल डिंगङा, मैडम कामा आदि अनेक क्रांतिकारी तैयार किए
15. जिनको पढ़कर बागपत की मस्जिद के इमाम(अब महेंद्र पाल आर्य) ने कुरान छोङ वेद अपना लिया और न जाने कितने मुसलमानों को आर्य बना दिया
यह सब अनेक व्यक्तियो ने नहीं बल्कि अकेले एक व्यक्ति ने किए थे।
क्या आप की ओर से ऐसे स्वामी दयानंद सरस्वती को उचित सम्मान मिलेगा??
क्या ऐसे महापुरुष के बारे मे देशवासियों को अधिक से अधिक नहीं जानना चाहिए?
ऐसे ऋषि के प्रेरणादायी चरित्र को घर घर पहुँचाने के लिए आपका अमुल्य योगदान अपेक्षित है।
यह तो बस परिचय भर है उस महान आत्मा का। उनके क्रांतिकारी कार्यो को जानने के लिए आपके पास इंटरनेट है करीए प्रयोग।

(द्वारा पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी अग्नि वेश जी योगाचार्य )


आपका ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन

बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - १२

 महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त : भाग - १२ 


बेटा! एक समय इस कलियुग की वार्ता प्रकट करते हुए तुमने कहा था कि महात्मा नानक नाम के महात्मा इस संसार में हुए। उन्होंने यह परिपाटी चलाई कि तुम्हें अपने इन केशों को स्थापित करना है और जो मुखारविन्द पर केश होते हैं इन सबको स्थापित करना है तुमने कहा था कि महात्मा नानक ने मर्यादा स्थापित करने के लिए, यवन से संग्राम करने के लिए, अपने धर्म की मर्यादा को ऊँचा बनाने के लिए ऐसा कहा। क्षत्रिय रूप हो करके उन्होंने अपने केशों को स्थापित करते हुए आर्यत्व का उत्थान किया। अपने धर्म की रक्षा की। परंतु यह परम्परा महात्मा नानक ने नहीं यह परम्परा क्षत्रिय रूप में रही थी, पर परंपरा हमारे आर्य रूप में भी थी। वह हमारे धर्म की रक्षा करने के लिए नहीं परंतु परमात्मा के ज्ञान विज्ञान के ऊपर निर्भर थी। (महानंद जी) गुरुदेव! यह कहते हैं कि यह इस प्रकार का हमारा  धर्म है और पाँच चिन्ह हमारे द्वारा अनिवार्य हैं। महानंद जी! इसका उत्तर यह है कि क्षत्रियों  के द्वारा पाँच चिन्ह अनिवार्य है परंतु केवल हम केशों के लिए पाँच चिन्ह माने तो यह तो केवल हमारा रूढ़िवाद है। हमें तो इसके विज्ञाान को देखना चाहिए, इसमें मानवता क्या कह रही है। इसमें मानवता तो यह कह रही है कि हमने राष्ट्र की रक्षा के लिए, धर्म की रक्षा हमने कोइ विधान बनाया और वह रक्षा हमारी पूरी हो गई। इसे आज भी अपनाते रहे तो उसका कोई महत्व नहीं वह तो रूढ़िवाद है। महात्मा नानक वह महान आत्मा थी जिन्होंने संसार का उत्थान किया, धर्म की रक्षा की परंतु आज उनके अनुयायी उनके मार्ग से बहुत दूर चले गये हैं। आज उनके अनुयायी दूसरों को अपना करना जानते हैं परंतु अपने को ऊँचा बनाना नहीं जानते। आज उन्हें ऊँचा बनना है। अपनी रसना के आनंद में नहीं जाना है परंतु अपने बल की रक्षा करनी है।

संस्कृति पर आघात

यवनों ने यहाँ आकर मनुष्यों के विचारों पर आक्रमण किया। क्यों हुआ? इसका कारण है कि यह रूढ़िवाद से हुआ। रूढ़िवाद से विचारों पर आक्रमण हुआ और विचारों पर आक्रमण करके यहाँ जो सम्पन्न विद्या थी उसे शान्त कर दिया। मुनिवरों! आधुनिक काल का संसार तो अपने विचारों से इतना परिपक्व है कि जो भी यथार्थ वाक्य आता है वह ढलक जाता है, उसमें वह समाहित नहीं होते। इसका क्या कारण है? इसका कारण है कि मानव के द्वारा इतना स्वार्थ है, इतना रूढ़िवाद है रूढ़िवाद से विचारों पर आक्रमण शान्त नहीं कर सकते। आज एक-दूसरे के विचारों पर आक्रमण किया जाता है जैसे मुहम्मद ने यहाँ आकर के विचारों पर आक्रमण किया, बुद्ध ने विचारों पर आक्रमण किया, महावीर ने विचारों पर आक्रमण किया, जिससे यहाँ अनेक मत प्रचलित हो गए। राजाओं ने आकर विचारों पर आक्रमण किए। अकबर ने यहाँ विचारों पर आक्रमण किया जिससे वैदिक संस्कृति शान्त होती चली गई। यहाँ क्या नहीं हुआ? वह पुस्तकालय जिसमें महाराजा अर्जुन और घटोत्कच की वह पुस्तक जिनमें सम्पन्न भौतिक ज्ञान और विज्ञान था वह सब अग्नि के मुख में चला  गया। आज उस साहित्य के समाप्त होने से क्या हुआ कि हमारी इस भारत भूमि को छोड़कर अन्य दूसरे राष्ट्रों ने जिन्होंने विज्ञान में कुछ प्रगति की है उन्होंने कहा है कि वेद ऋषियों का एक काव्य है।

जर्मनी की प्रगति वेद से
 
महाराजा परीक्षित के राज्य में महाराजा जन्मेजय द्वारा सर्व यज्ञ कराने के पश्चात् जिसको हम पूर्व काल में जन्मरती कहा करते थे और आधुनिक काल में उसको जर्मनी कहा जाता  है, वहाँ जाकर जनमेजय ने अपना एक सूक्ष्म सा राष्ट्र बनाया और वह वहाँ वेद के अनुपम साहित्य को स्थापित किया। उस वेद की विद्या में ही प्राप्त होता है। हमें संसार में कोई ऐसी पुस्तक प्राप्त नहीं होती जहाँ वेद से पुरानी और ऊँची कोई विद्या प्राप्त हो जाये। यह ज्ञान विज्ञा सब प्रकार से संपन्न है।



संदर्भ ग्रंथ -
महाभारत एक दिव्य दृष्टि
(पूज्य ब्रह्मर्षि कृष्णदत्त जी द्वारा प्रकथित प्रवचनों से महाभारत के विषयों का संकलन)
प्रकाशक - वैदिक अनुसंधान समिति (पंजी0), दिल्ली

आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन

सुविचारम्

सुविचार


बुद्धिमान की हानि अथवा अपकार करके ऐसा विश्वास नहीं करना चाहिए कि मैं उससे दूर हूँ, वह मेरा क्या बिगाड़ेगा? बुद्धिमान व्यक्ति के बाजू बड़े लम्बे होते हैं। यदि उसे सताया जाएगा तो वह उन्हीं बाजुओं से बदला ले सकता है।

जो व्यक्ति विद्वान, अध्यापक, ब्राह्मणों व ॠषि मुनियों के धन को हरता है या उनके क्रोध का पात्र बनता है उसका विनाश काल निकट है यह निश्चित जानो।


संदर्भ: विदुर नीति

आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन 

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - 11


ओ३म्
जय गुरुदेव

 महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - 11


रूढ़िवादी काल

भगवन्! इस लोक में रूढ़िवाद है जैसा मैंने आपसे वर्णन किया था यहाँ कोई मुहम्मद को मानने वाला है, कोई ईसा को मानने वाला है कोई दयानन्द को मानने वाला है और कोई महात्मा शंकर को।

मेरे प्यारे ऋषि मंडल! मैं पुनः से एक वाक्य कहा करता हूँ  कि बेटा! तुम इसे रूढ़िवाद स्वीकार कर लो परंतु जा भी ऊँचा मानव आता है वह कोई न कोई वेद के अंग को लेकर ही चलता है। कोई सन्यासी उच्चारण करता है कि भाई राष्ट्र में ऊँची विद्या होनी चाहिए, तो बेटा! यह भी वेद का एक पवित्र अंग बन जाता है। कोई मानव यह कहता है कि किसी दूसरे मनुष्य को अपने अधीन बनाना है। यह कोई वेद का संदेश नहीं है। जब बेटा! इस प्रकार के विचार कोई भी मानव देता है तो वह वेद के एक न एक अंग को लेकर चलता है। बेटा! एक समय तुमने मुझे मुहम्मद और ईसा की चर्चा प्रकट कराई और तुमने वर्णन किया कि ईसा आयुर्वेद के सिद्धांत को लेकर चला, आयुर्वेद से चिकित्सा करता हुआ, ब्रह्मचर्य का पालन करता, उनमें कोई सूक्ष्मता हो सकती है परंतु वह वेद के कोई न कोई अंग को लेकर चला। आगे संसार अपनी बुद्धि के अनुकूल रूढ़िवाद में चला जाए तो बेटा! वेद का कोई दोष नहीं और न यथार्थ पुरुष का कोई दोष है। आगे मुहम्मद के विषय में तुमने एक चर्चा निर्णय की कि जहाँ उनकी जन्मभूमि थी वहाँ अप्रिय वस्तुओं को पान करना, प्रत्येक गृह में वज्रों के देवालय, द्रव्य के बदले अधिक द्रव्य लेना आदि, उन सबका एक आदेश देने वाला व्यक्ति हुआ वह कोई न कोई वेद के अंग को लेकर चला। यह हो सकता है कि राष्ट्रवाद में उनकी प्रवृत्ति अधिक रही हो और आगे रूढ़िवाद में चले जायें तो उसमें वेद का काई दोष नहीं।

इसी प्रकार बेटा! तुमने महात्मा महावीर की चर्चा प्रकट की वह अहिंसा परमोधर्मः का नाद लेकर चले, तो यह ध्वनि वेद में आती है। अब रही यह बात कि आगे चल करके उनके मानने वाले रूढ़िवाद में चले गए तो बेटा! वेद का कोई दोष नहीं और न वेद के किसी अंग का कोई दोष है। इसी प्रकार आगे तुमने वर्णन कराया कि महात्मा बुद्ध भी अहिंसा परमोधर्मः को लेकर चले, उनके जीवन में, उनकी लेखनी में कोई सूक्ष्मता हो सकती है परंतु उनका संकेत था वह वेद का था और वह वेद के संकेत को लेकर चले। इसके पश्चात् जैसा तुमने वर्णन कराया महात्मा शंकराचार्य, त्रैतवाद को लेकर चले। उन्हें महर्षि कह दो, महापुरुषों की उपाधि दे दो, कुछ भी कह दो, परंतु वह वेदान्त को लेकर चले उन्होंने वेद के सर्वशः अंग को अपनाया। आगे चलकर उनको मानने वाले उनके इतने गम्भीर विषय में न जाकर रूढ़िवाद में चले गये। इसमें वेद का कोई दोष नहीं। इसी प्रकार महात्मा दयानंद की तुमने चर्चा प्रकट की कि वह वेद का संदेश लेकर चले। त्रैतवाद को लेकर के चले, वेद के प्रत्येक अंग को लेकर के चले। आगे चलकर उनकी मान्यता वाले रुढ़िवादिता में आ जाएँ तो इसमें दयानंद जी या वेद का कोई दोष नहीं। इसी प्रकार तुमने महात्मा नानक की चर्चा की। महात्मा नानक एक वाक्य को लेकर के चले कि राष्ट्रवाद का कल्याण होना चाहिए। मानवता ऊँची होनी चाहिए, किसी मानव का, किसी जीव का हनन नहीं करना चाहिए। उसी संकेत को लेकर चले। यदि आज उनकी मान्यता वाले रूढ़िवाद में आ जाएं तो बेटा! इसमें महात्मा नानक का कोई दोष नहीं। वह वेद के किसी अंग को लेकर चले यह दोष तो मानने वालों का है। देखो, वेद सार्वभौमिक है जितने भी महापुरुष होते हैं वेद के किसी अंग को अपनाया करते हैं।

संदर्भ ग्रंथ-
महाभारत एक दिव्य दृष्टि
(पूज्यपाद ब्रह्र्षि कृष्णदत्त जी द्वारा प्रकथित प्रवचनों से महाभारत के विषयों का संकलन) प्रकाशक ः वैदिक अनुसंधान समिति (पंजीकृत)

शेष भाग अगली कड़ी में



आपका
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्
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